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आनन्द प्रवचन : भाग १०
फैल जाएगा, इसकी बदबू असह्य है । निदान, राजा ने सौन्दर्याभिमानिनी वासवदत्ता को नगर के बाहर एक घूरे पर डलवा दिया। वहाँ पड़ी-पड़ी वह रोग की असह्य पीड़ा से कराहती रही।
उपगुप्त भिक्षु को पता लगा। वह रुग्ण वासनदत्ता को सँभालने के लिए पहुंचा । उसे सान्त्वना देते हुए भिक्षु ने कहा- 'बहन ! घबराओ मत । मैं उपगुप्त भिक्षु अपने वादे के अनुसार आ पहुँचा हूँ तुम्हारी सेवा में ।" भिक्षु ने तिरस्कृत और उपेक्षित वासवदत्ता की इतने सुन्दर ढंग से सेवा की कि वह स्वस्थ हो गई । अब उसे शाश्वत और नश्वर सौन्दर्य का अन्तर समझ में आ गया। उपगुप्त भिक्षु ने उसे शाश्वत आत्मिक सौन्दर्य प्रगट करने की प्रेरणा दी। वासवदत्ता अब शाश्वत सौन्दर्य पाने की साधना बौद्ध भिक्षुणी बनकर करने लगी। स्थायी आकर्षण विभूषा में नहीं, शाश्वत सौन्दर्य में
___ स्थायी एवं शाश्वत सौन्दर्य का तत्त्व जिसे ज्ञात हो जाता है, उसके मन में बाह्य सौन्दर्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं रहता। वह शाश्वत सौन्दर्य की उपासना में लीन रहता है, उसे बाहर की चमक-दमक, टीप-टाप या आडम्बर की लोकमूढ़ता में आस्था नहीं रहती। महात्मा गांधी ने देश सेवा के लिए आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत पालन करने की प्रतिज्ञा ली । उसी दौरान एक बार ब्रिटिश शासन के वायसराय के आमन्त्रण पर लन्दन में होने वाली गोलमेज परिषद में जाने को तैयार हुए । वेश-भूषा तो उनकी सादी ही थी, खादी की एक छोटी-सी पोतड़ी और सफेद चादर ! जब वे वायसराय भवन में इस वेशभूषा में पहुंचे तो पहले वायसराय तथा उनके अन्य अधीनस्थ लोगों ने गांधीजी से मिलने में आनाकानी की। परन्तु जब गांधीजी ने अपनी दृढ़ता बताई कि “मैं गरीब भारत का प्रतिनिधि बनकर आया हूँ। मुझे भड़कीली या तथाकथित सभ्य माने जाने वाले समाज में प्रचलित पोशाक पहनना शोभा नहीं देता, मैं तो इसी पोशाक में आपसे मिल सकता हूँ। अन्यथा, आप न चाहें तो बिना मिले ही वापस लौट जाऊंगा।"
गांधीजी की सादी वेश-भूषा और उनके भव्य आत्मिक गुण युक्त सौन्दर्य को देखकर वायसराय बहुत प्रभावित हुआ । शाश्वत सौन्दर्य के उपासक को कृत्रिम सौन्दर्य को जरूरत नहीं
ब्रह्मचारी का अर्थ है-ब्रह्म में विचरण करने वाला, अपनी इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, चित्त, हृदय आदि सबको ब्रह्म (शुद्ध आत्मा) की सेवा में लगाने वाला, प्रत्येक प्रवृत्ति या चर्या ब्रह्म (आत्म) हित की दृष्टि से करने वाला । जब ब्रह्मचारी का जीवन ही आत्मा की परिचर्या-उपासना में व्यतीत होगा, तब उसे आत्मिक सौन्दर्य के दर्शन होने स्वाभाविक हैं । जिसे आत्म-सौन्दर्य के दर्शन हो जाते हैं या आत्म-सौन्दर्य की जो झाँकी पा जाता है, उसके लिए बाह्य सौन्दर्य-शारीरिक या कृत्रिम सौन्दर्य
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