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________________ ब्रह्मचारी विभूषारहित सोहता २८५ प्रसाधन की चीजें लाने-मंगाने में खर्च की जाती है। आज का मनुष्य शरीर की सफाई और साज-सज्जा पर जितना ध्यान देता है, संभव है, किसी युग में इतना ध्यान इस देश में नहीं दिया गया होगा। मैं यह सोचकर हैरान हो जाता हूँ कि ऋषि-मुनियों के इस देश में सुन्दरता के प्रदर्शन में कितना समय, शक्ति और धन खर्च किया जाता है ? फिर भी सौन्दर्य के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं । आमदनी को देखते हुए जिस अनुपात में भारत में फैशन और प्रसाधन पर धन व्यय किया जाता है, उतना शायद ही किसी अन्य देश में किया जाता हो । देश की तरुण पीढ़ी का स्वास्थ्य देखें तो आप हैरान हो जाएंगे, अधिकांश पतली टाँगों और बैठी आँखों वाले युवकों को देखकर ! घर में भले ही फाकाकशी की जाती हो, लेकिन बाहर तो अपटुडेट पोशाक पहनकर बन-ठनकर निकलना आवश्यक समझते हैं। ब्रह्मचर्य पालन की उम्र में फैशन के दीवाने ऐसे युवक भी देखने को मिलते हैं, जो अपनी हवस पूरी करने के लिए बहुत-सा पैसा विचित्र पोशाक बनवाने में लगा देते हैं, फिर उसका निर्वाह न कर सकने पर वही फटी पुरानी बुशशर्ट और पतलून वर्षों तक पहनते हुए अपनी मखौल कराया करते हैं । साधारण-से कपड़े उतने ही पैसे में बनवाते तो वे वर्षों तक भलीभाँति उसे चला सकते थे। इतनी सब साज-सज्जा करने पर भी कृत्रिम सौन्दर्य का पोषण होता है । किस देश में कितना स्वाभाविक सौन्दर्य है, इसका अन्दाज इसी से लगाया जा सकता है कि उस देश में कृत्रिम सौन्दर्य सामग्री की कितनी खपत है। जिस देश में जितनी अधिक सौन्दर्य सामग्री बिकती हो, समझ लेना चाहिए उस देश के लोग उसी अनुपात में स्वाभाविक सुन्दरता से वंचित हैं। इसके विपरीत जिस देश में शृंगार-सामग्री जितनी कम बिकती हो, समझ लो, उस देश के लोग उतने ही स्वाभाविक रूप से सुन्दर हैं। __ सौन्दर्य का आगमन अन्दर से होता है, आत्मा को ब्रह्मचर्य, सन्तोष, इन्द्रियसंयम, शील आदि गुणरत्नों से सजाने से होता है, बाह्य टीप टाप, फैशनेबल कपड़ों, लिपिस्टिक, हेयर आइल, सेंट, पाउडर, क्रीम, स्नो आदि की लिपाई-पुताई, केशविन्यास और शृंगार प्रसाधनों द्वारा शरीर को सजाने-संवारने से नहीं। कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में बताया है चिरायुषः सुसंस्थानाः दृढ़संहनना नराः । तेजस्विनो महावीर्या भवेयुर्ब्रह्मचर्यतः ॥ "ब्रह्मचर्य से मनुष्य शरीर से चिरायु, सुन्दर, सुडौल मजबूत, संहनन (ढाँचे) वाले, तेजस्वी और महाबलवान बनते हैं।" ___अतः स्वाभाविक सौन्दर्य का मूल कारण ब्रह्मचर्य, इन्द्रिय-संयम, शील, संतोष आदि हैं; प्रसाधन नहीं । ब्रह्मचारी व्यक्ति स्वाभाविक रूप से सुन्दर, सुडौल और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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