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ब्रह्मचारी विभूषारहित सोहता
प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं ब्रह्मचारी - जीवन के सम्बन्ध में आपसे चर्चा करूँगा । भारतीय जनजीवन में गृहस्थाश्रम के अतिरिक्त तीनों आश्रमों में ब्रह्मचर्य पालन अनिवार्य था । मानव-जीवन की सुदृढ़ नींव ब्रह्मचर्याश्रम पर टिकाई जाती थी, जिससे शेष जीवन भी ब्रह्मचर्य के संस्कारों से ओतप्रोत रहे । गृहस्थाश्रम में ब्रह्मचर्य की मर्यादा रहे । निष्कर्ष यह है कि भारतवासी के जीवन में अधिक भाग ब्रह्मचारी जीवन का था, बहुत ही कम भाग था - अब्रह्मचर्ययुक्त जीवन का । इसलिए यह सोचना आवश्यक है कि ब्रह्मचारी जीवन की शोभा किसमें है ? ब्रह्मचारी किस से शोभता है, किससे नहीं ? इस प्रश्न का उत्तर महर्षि गौतम इस जीवनसूत्र द्वारा दे रहे हैं । गौतमकुलक का यह तैंतालीसवाँ जीवनसूत्र है, जो इस प्रकार है
'अभूसणो सोहs बंभयारी ।'
"ब्रह्मचारी विभूषा से रहित ही सोहता है ।" इस पर गम्भीरता से विचार करें ।
यह सौन्दर्य पूजा : कितनी कृत्रिम, कितनी मँहगी ?
मानव सौन्दर्य का पुजारी है । वह सहसा सुन्दरता की ओर आकृष्ट होता है । परन्तु जब तक उसे वास्तविक सौन्दर्य का ज्ञान न हो, तब तक कृत्रिम और नश्वर सौन्दर्य की ओर झुकना खतरे से खाली नहीं है । साँप सुन्दर और चमकीली चमड़ी से मढ़ा हुआ जहर का पिण्ड है, अगर उसे सुन्दर समझकर पकड़ा जाएगा तो क्या नतीजा होगा ? मृत्यु ! इसी प्रकार किसी स्त्री के बाह्य रूप-रंग या आकर्षक वेश-भूषा ! को देखकर सौन्दर्यलिप्सावश आकृष्ट हो जाना और कामान्ध होकर उसके साथ बलात्कार करना जीवन को स्वयं आग में झोंकना है अथवा स्वयं मेक-अप बनाकर चटकीली वेश-भूषा अपनाकर कामिनियों को आकृष्ट करना स्वयं कामाग्नि में कूदकर भस्म होना है ।
वास्तव में स्वाभाविक सौन्दर्य और उसके मूल स्रोत को न पहचानने के कारण मनुष्य नकली सौन्दर्य की ओर आकृष्ट होता है या स्वयं नकली सौन्दर्य अपनाता है । जब मनुष्य में स्वाभाविक सौन्दर्य नहीं होता तो वह नकली सौन्दर्य
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