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________________ शिष्य की शोभा : विनय में प्रवृत्ति २७५ सांसारिकता में, आसक्ति और वैराग्य में कोन श्रेष्ठ है, कौन बड़ा है ? चलो, आज हम यहाँ से दूर चलेंगे ।" शिखिध्वज महर्षि उद्दालक के साथ चल दिया। दोनों दिन भर चलकर रात्रि को वहाँ से ५ योजन दूर एक गाँव में पहुँचे । उस गाँव में ब्राह्मणों और क्षत्रियों का बाहुल्य था । एक कुलीन के गृहस्थ के यहाँ वे टिके । सन्ध्या-उपासना करके उद्दालक ने गृहस्थ को बुलाकर कहा - " यदि जाप अपनी युवा-पुत्री को रातभर के लिए हमारे पास रहने दें तो हम मन्त्र शक्ति से आपके घर में उपलब्ध सारे लोहे को स्वर्ण राशि में बदल सकते हैं ।" पहले तो गृहस्थ इस संन्यासी की धूर्तता पर झुंझलाया लेकिन स्वर्ण राशि के लोभ में शिखिध्वज की तरह वह भी फिसल गया । सोने के लोभ में पुत्री देना स्वीकार कर लिया । वैभव-विलास के रंगीन सपनों ने उसकी प्रतिरोध शक्ति नष्ट कर दी । महर्षि ने उस गृहस्थ के घर की लोह राशि स्वर्ण में बदल दी । गृहस्थ ने अपनी पुत्री महर्षि को समर्पित कर दी । महर्षि ने बालिका की पीठ पर स्नेह का हाथ फेरते हुए कहा – “पुत्री ! तुम्हारी पितृभक्ति प्रशंसनीय है, पर धन के लोभी पिता की आज्ञा से धार्मिक मर्यादाएँ महान् होती हैं । तुम्हें पिता के अनुचित एवं अविवेकपूर्ण निर्णय को नहीं मानना चाहिए था, आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रति रोध करना चाहिए था ।" शिखिध्वज ने यह सब अपनी आँखों से देखा । इसके बाद महर्षि वहाँ रुके नहीं, रात को ही आगे चल पड़े । प्रातः होने तक गुरु-शिष्य पारावती नगर पहुँचे । सन्ध्यावन्दन के पश्चात वे एक धनी सेठ के यहाँ अतिथि बने । धनिक ने उनका स्वागत किया । महर्षि ने स्वागत के बदले उससे कहा - " एक घण्टे में आप जितना लोहा ला सकें, आइए; हम उसे स्वर्ण में बदल देंगे ।" वणिक का मन हर्ष से नाच उठा । उसने सारे घर को लोहा बटोरकर लाने में लगा दिया । आध घण्टे में घर का सारा लोहा इकट्ठा कर लिया । वणिक की इच्छा इतने से तृप्त न हुई । पड़ोस में लुहार का घर था, अपने पुत्रों को भेजकर उसका बहुत-सा लोहा चोरी करवा लिया । दीन लुहार की आजीविका छिन जाने का भी सेठ को ख्याल न रहा । लोहे का अम्बार लग गया । महर्षि ने हँसकर कहा - "आह ! तृष्णे ! तू कभी पूर्ण न हुई, मनुष्य तेरे पीछे पागल की तरह कितना दौड़ता फिरा !" और उन्होंने वह लोहा भी सोने में बदल दिया । आगे चल पड़े । अगली सन्ध्या राजगृह में बिताई । वहाँ का राजा अपने पुत्र के विवाह की तैयारी में था । महर्षि ने उसे बुलाकर कहा - " यदि वह किसी नवजात शिशु को बलिदान के लिए दे सके तो उसके राजभवन की प्रत्येक वस्तु को सोने में बदला जा सकता है ।" लोभी राजा ने पड़ोसी महिला के बच्चे को गोद से छिनवा मँगाया और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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