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________________ २४० आनन्द प्रवचन : भाग १० भाव से स्वतः प्रेरित होगा। इसलिए सच्चारित्र में प्रगति के लिए सद्ज्ञान एवं परमार्थ ज्ञानरूप सुध्यान का होना आवश्यक है। ज्ञान के साथ सुध्यान न हो तो.... कोई कह सकता है-माना कि चारित्र के साथ ज्ञान का होना आवश्यक है, परन्तु सुध्यान की क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर मैं आपको एक व्यावहारिक दृष्टान्त देकर समझाता हूँ काशी में बारह वर्ष तक एक गुरुकुल में पढ़कर एक विद्वान शास्त्रज्ञ एवं सदाचारी पण्डित अपने गांव की ओर रवाना हुआ। एक घोड़े पर अपनी पढ़ी हुई सारी पुस्तकें लादकर वह चल पड़ा। काफी लम्बा रास्ता पार करना था। अपने गाँव से थोड़ी ही दूरी पर एक छोटे से गांव में कुंए के पास धर्मशाला में विश्राम के लिए ठहरा । इस तिलकधारी नव-पठित पण्डित को देख ग्रामीण लोग बड़ी संख्या में इकट्ठे हो गये। पूछा-“कहाँ से आये हो ? क्या पढ़े हो ? शास्त्रार्थ भी कर सकते हो या नहीं ?" आगन्तुक पण्डित ने. कहा- "मैं काशी में १२ वर्ष पढ़कर आया हूँ। शास्त्रज्ञ हूँ, शास्त्रार्थ भी कर सकता हूँ।" ग्रामीण लोग अपने गांव वाले पण्डित को बुला लाये । जड़ प्रकृति का ग्राम्य पण्डित जब सामने आया तो नवागन्तुक पण्डित ने उसे कुछ पूछने के लिए कहा। ग्राम्य पण्डित ने मध्यस्थ निर्णायक के लिए कहा तो ग्रामीण लोगों ने हां भर ली। शर्त यह हुई कि जो जीतेगा, वह हारने वाले की सब अच्छी चीजें ले लेगा। ___ सर्वप्रथम ग्रामीण पण्डित ने मूंछों पर ताव देकर प्रश्न किया-"तुम्बक तुम्बक तुम्बा है जी, तुम्बक तुम्बक तुम्बा है; कहिए इसका क्या तात्पर्य है ?" बेचारा नवपठित पण्डित पढ़ा तो बहुत था, लेकिन गुना नहीं था, चिन्तनमनन करके व्यावहारिक अभ्यास नहीं किया था। तात्पर्य यह है कि ज्ञान तो था, पर ध्यान नहीं था इसलिए ग्रामीण पण्डित के प्रश्न को न समझ सका। चुप हो गया। जब काफी देर तक चुप रहा, तो ग्रामीण लोगों ने उसकी हार और अपने गांव के पण्डित की जीत का फैसला कर दिया। पुस्तकों सहित उसका घोड़ा छीन लिया और अपमानित करके गाँव से निकाल दिया। जब वह अपने गांव पहुंचा तो ग्रामवासी तथा पारिवारिक जन उसे ससम्मान अपने घर लाये, पर वह बिल्कुल हताश एवं उदास था। पिता के पूछने पर उसने सारी आप-बीती कह सुनाई। उसके पिता ने कहा-"तू ज्ञान तो प्राप्त कर आया, सदाचारी भी बना, परन्तु ध्यान नहीं सीखा । देख, मैं जाता हूँ तेरी सब पुस्तकें और घोड़ा वगैरह वापस ले आऊँगा।" नवपठित पण्डित का पिता बैल की पीठ पर कंडे आदि भरकर तिलक छापे लगाकर मोटी पगड़ी और सफेद धोती पहने उसी गांव में पहुँचा। शास्त्रार्थ मध्यस्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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