________________
प्रशम की शोभा : समाधियोग-२
२०६
उसने बतला दिया, पर आपको उसे भूल जाना चाहिए। अगर आप गढ़ मुर्दो को बार-बार उखाड़ते रहेंगे तो आपका मन गन्दा होगा, उसमें विक्षोभ, द्वेष, घृणा आदि के कीटाणु घुसकर आपको अशान्त कर देंगे । यदि कभी किसी ने आपके साथ कोई अनुचित व्यवहार किया हो तो आप उसे स्मरण क्यों रखें? ऐसी बातों को विस्मत करके उसके साथ घृणा के बदले प्रेम करने लगेंगे, हानि पहुंचाने के स्थान पर सहृदयता देने लगेंगे तो वह व्यक्ति आपके प्रति स्वतः उदार हो जाएगा। इन सब साधक उपायों से प्रशम बद्धमूल होगा।
प्रशमयुक्त व्यक्ति के लक्षण प्रशम जिसके अन्तःकरण में सुदृढ़ हो जाता है, वह साधक प्रशम को भंग करने के बाह्य निमित्त मिलने पर भी, तथा वैसे अप्रशम के वातावरण में रहने पर भी प्रशम से विचलित नहीं होता। वह विषम से विषम परिस्थिति में भी क्रुद्ध नहीं होता, कामग्रस्त नहीं होता, अपने प्रशम-पथ पर अबिचल रहता है।
तिरुवल्लुवर दक्षिण भारत के एक महान् प्रशम-साधक सन्त थे । वे जुलाहा थे । साड़ियां बनाकर बेचा करते थे । एक दिन युवकों की एक टोली उधर से निकली । तिरुवल्लुवर को देखते ही युवकों ने कहा-“यह जुलाहा सधा हुआ शान्तिप्रिय सन्त हैं, इसे क्रोध नहीं आता।" टोली में स्वभाव से उद्दण्ड एक धनिकपुत्र युवक था । उसने कहा- "मैं देखता हूँ, इसे क्रोध कैसे नहीं आता !" टोली तिरुवल्लुवर के सामने आ खड़ी हुई । उद्दण्ड ने एक साड़ी उठाई और पूछा-"इसका क्या मूल्य है ?"
तिरुवल्लुवर ने कहा- "दो रुपये ।" युवक ने साड़ी को फाड़कर दो टुकड़े कर दिये और एक टुकड़ा हाथ में लेकर पूछा-"इसका क्या मूल्य है ?"
तिरुवल्लुवर ने उसी शान्तभाव से कहा-“एक रुपया।"
युवक इस तरह टुकड़े करता ही गया और पूछता गया-'इसका क्या मूल्य है ?" यों उसने साड़ी का एक-एक तार अलग कर डाला, लेकिन इस छिछोरपन पर भी तिरुवल्लुवर के चेहरे पर न कोई अशान्ति थी और न कोई व्यग्रता ही थी। युवक अपने आपको पराजित-सा अनुभव करने लगा। उसने दो रुपये निकाले और यह कहते हुए तिरुवल्लुवर के सामने रख दिये कि "आपका मैंने बहुत नुकसान कर दिया, लीजिये, ये दो रुपये।"
तिरुवल्लुवर ने कहा- "बेटा ! ये दो रुपये अपने पास रखो। तुम्हारा पिता कहेगा-घर में माल तो लाया नहीं, दो रुपये कहां खोये ?"
युवक का हृदय गद्गद् हो गया। वह सन्त के चरणों में गिरकर अपने अपराध के लिए क्षमायाचना करने लगा।
प्रशमयुक्त व्यक्ति के जीवन का यह अनूठा उदाहरण है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org