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________________ १९४ आनन्द प्रवचन : भाग १० -विशुद्ध परिणामों (भावों) के सर्वत्र शान्ति होती है । __ परन्तु एक बात निश्चित है कि जब तक शान्ति के लिए अपने भीतर से पुरुषार्थ न हो, और राग-द्वेष, काम-क्रोधादि तथा विषयासक्ति आदि मन से निकल नहीं जाएंगे, तब तक केवल शान्ति-मंत्र का उच्चारण करना उफनते दूध को थोड़ी देर के लिए शान्त करने के लिए छींटे देने के समान होगा। प्रशम आन्तरिक वस्तु है, शरीर को निश्चेष्ट बनाने, वाणी को रोक देने या ध्यान धरकर बैठ जाने मात्र से वह नहीं आ जाता । प्रशम एक दिव्य मनःस्थिति है, उसका सम्बन्ध मन में निहित विवेक-भावना से है। यही कारण है कि अन्यायी, द्रोही, कामी, क्रोधी, आवेशग्रस्त एवं अविबेकी लोग, चाहे कितना ही शान्तिपाठ कर लें; वे प्रशम को तब तक प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक प्रशम के लिए आन्तरिक पुरुषार्थ न कर लें। ऐसा प्रशम, जो कि आत्मनिष्ठ है, वह किसी देवता द्वारा, किसी अवतार तीर्थकर या पैगम्बर द्वारा ही प्राप्त नहीं होता, और न ही भाग्य के द्वारा प्राप्त होता है, वह अपने आध्यात्मिक पुरुषार्थ के द्वारा ही प्राप्त होता है । कोई भी भगवान किसी को प्रशमनिष्ठ नहीं बना सकता, किसी के जीवन में कोई भी ऊपर से प्रशम नहीं उड़ेल सकता, वह तो अपने अन्तर् के पुरुषार्थ से निष्पन्न होता है। पाश्चात्य दार्शनिक रस्किन (Ruskin) के शब्दों में प्रशम-प्राप्ति का सन्देश सुनिए "No peace was ever won from fate by subterfuge or agreement; no peace is ever in store for any of us, but that which we shall win by victory over shame or sin, victory over the sin that oppresses, as well as over that which corrupts.” "कोई भी प्रशम (शान्ति) करार या प्रतिनिधित्व के द्वारा भाग्य से कदापि नहीं जीता जाता, और न कोई प्रशम हममें से किसी के लिए कहीं किसी भण्डार में जमा कर रखा है, किन्तु प्रशम वह है, जिसे हम लज्जाजनक कार्यों या पापों पर विजय पाकर अधिकृत करेंगे । वह पाप जो कि हमें दबाता है, उस पर और जो हमें भ्रष्ट करता है, उस पर हम विजय पाकर ही प्रशम प्राप्त कर सकेंगे।" बन्धुओ ! प्रशम क्या है, क्या नहीं है ? तथा प्रशम कहां और किसमें है ? इस सम्बन्ध में विविध पहलुओं से आपके समक्ष विचार रखे हैं, ताकि आप प्रशम के वास्तविक स्वरूप को हृदयंगम कर सकें। प्रशम के स्वरूप को समझ लेने के पश्चात उसकी शोभा किसमें है ? इसे समझना आसान होगा। महर्षि गौतम ने समाधियोग को प्रशम की शोभा क्यों बताया ? उसके पीछे क्या रहस्य है ? प्रशम को प्राप्त करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं ? प्रशमयुक्त व्यक्ति के क्या-क्या लक्षण हैं ? इन सब बातों पर अगले प्रवचन में हम गहराई से विचार करेंगे। आशा है, आप प्रशम : का स्वरूप समझकर उसके प्रशस्त पथ पर चलने का पुरुषार्थ करेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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