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प्रशम की शोभा : समाधियोग-१ १८६ देते हैं । मुझे एक नाधु का पता है, वह बहुत क्रोधी था, बात-बात में उसे क्रोध आ जाता और क्रोध में भान भूलकर पात्र फोड़ देता, इधर-उधर भागने लगता, लड़नेझगड़ने और वाक्कलह करने लगता था। उसके गुरु एवं गुरुभ्राता सभी उसके कारण परेशान थे । गुरु ने एक दिन उस क्रोधी साधु से कहा- "वत्स ! तू बहुत क्रोध करता है, साधु को इस प्रकार का क्रोध करना शोभा नहीं देता। फिर तू तपस्या भी करता है, उसके साथ इतना उग्र क्रोध शोभा नहीं देता।"
उसने कहा-"गुरुजी ! मैं क्या करूँ ? जब क्रोध आता है तो मेरे बस की बात नहीं रहती । आप ही कोई उपाय बताइए, जिससे मुझे क्रोध न आए।"
उसके गुरु शान्त प्रकृति के विद्वान् साधु थे, उन्होंने सोचा-'इसे शास्त्रीय ज्ञान या आत्मज्ञान तो कुछ है नहीं, और न ही इसमें इसकी रुचि है, स्थूल बुद्धि का है, इसलिए बाह्यरूप से भी इसका क्रोध शान्त हो जाय ऐसा स्थूल उपाय बताना ही फिलहाल उचित होगा।'
अतः उन्होंने उसे स्नेहपूर्वक कहा- 'देख ! मेरा कहना मानेगा ? आज से एक वर्ष तक मौन रख । कोई खास बात हो तो लिखकर या इशारे से बता सकता है । इससे तेरा क्रोध मन ही मन रहेगा, उग्ररूप धारण न कर सकेगा।" उसने गुरुजी से एक वर्ष तक का मौन ले लिया। एक वर्ष पूरा होने के बाद फिर मौन एक या दो वर्ष तक का ले लिया। यों वह साधु जिन्दा रहा वहाँ तक उसने मौन ही रखा । उसने उग्र तपस्याएँ की, मौन रहा और मौन में ही उसका निधन हुआ। आन्तरिक क्रोध तो उसका गया नहीं, परन्तु बाहर से तीव्र क्रोध और उस दौरान जो आवेशपूर्ण चेष्टाएँ होती थीं, वे बन्द हो गईं।
परन्तु मैं आपसे पूछता हूँ, इस तपस्वी और क्रोधी साधु के द्वारा मौन लिये जाने पर बाहर से तो क्रोध का शमन हो गया, किन्तु अन्तर में क्रोध के कारण घुटन होता रहा, क्या उसे आप प्रशम कहेंगे? मैं किसी पर आक्षेप की दृष्टि से यह नहीं कह रहा हूँ, परन्तु वस्तुस्थिति की दृष्टि से प्रशम के वास्तविक रूप का विश्लेषण कर
अंगच्छेदन-प्रशम का मार्ग नहीं अब आइए, एक दूसरे पहलू से प्रशम पर विचार कर लें। कई व्यक्ति अपराधी अंगों को मार-पीटकर या तोड़-फोड़कर शान्त करते हैं। उनका विचार है कि जिस अंग ने गलती की उसे मारो-पीटो, सजा दो, उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दो, फिर वह अपने आप शान्त होकर बैठ जायेगा। हाथ ने कोई अपराध किया तो हाथ को काट डालो या पीटकर सीधा कर दो, आँखों ने गलती की तो आँखें फोड़ डालो, पैरों ने कोई भूल की तो उन्हें काट डालो या मार-पीटकर दण्डित कर दो। जीभ ने गलती की तो होठ सीं लो, या जीच खील लो। कान ने गलत शब्द सुने तो उसे काट डालो या बहरा कर दो। ये सब अतिहठ के प्रयोग हैं। अंगोपांगों को दण्ड
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