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आनन्द प्रवचन : भाग १०
इसी प्रकार, १. क्षमा, २. सहिष्णुता, ३. सहनशीलता, ४. क्षमता, ५. तितिक्षा, ६. समाधि, और ७. धीरता-क्षान्ति के इन सातों अंगों का प्रवेश उग्र-तपस्वी के जीवन में होता है तो उसका जीवन आत्मविशुद्धि से चमक उठता है, प्रकाश स्तम्भ की तरह उसका क्षान्तिमय जीवन स्वयं तो ज्ञानालोक से जगमगाता रहता ही है, दूर-दूर तक लोगों को उसके जीवन का प्रकाश मिलता रहता है । आप भी उग्रतप के साथ शान्ति सरोवर में डुबकी लगाइए और अपनी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाइए।
तप की शोभा बढ़ानी हो तो क्षान्ति अपनाइए।
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