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________________ १२ परायणता से क्या लाभ क्या हानि ? ४०, सम्राट अशोक की कठोर दण्ड-परायणता का कुपरिणाम - दृष्टान्त ४०, वर्तमान शासनकर्ताओं में भी दुष्टाधिपता ४३, अन्य दुष्टाधिप भी दण्डपरायण ! ४३ । ४३. विद्याधर होते मन्त्र-परायण भारतीय मनीषियों द्वारा विविध विद्याओं की देन ४५, विद्याधर और विद्याएँ ४६, विद्याओं का प्रारम्भ धरणेन्द्र द्वारा ४७, विद्या और मन्त्र का अविनाभावी सम्बन्ध ४७, मन्त्र और विद्या में अन्तर ४८, मन्त्रः स्वरूप, शक्ति और प्रभाव ४६, 'मन्त्र' शब्द की व्युत्पत्ति ४६, मन्त्र शक्ति के चार आवश्यक तथ्य ५०, मन्त्र साधना के तीन संकल्प ५०, संकल्प के लिए अपेक्षित सात शुद्धियाँ आवश्यक ५०, मन्त्र शक्ति के विकास के चार आधार ५०, मन्त्र विनियोग के पाँच अंश ५१, मन्त्र-विद्या की उत्पत्ति का लक्ष्य ५२, मुसलमान पीरभाई की नवकार मन्त्र पर अचल श्रद्धा और उसका चमत्कार ५३, मन्त्रों के प्रकार और उद्देश्य ५४, मन्त्रों का दुरुपयोग और सावधानी ५५, मन्त्र का प्रयोगकर्ता कैसा और कौन ५५, जैन मन्त्र साधकों की आचार संहिता ५६, मन्त्र साधना में सफलता के लिए विद्युन्माली का दृष्टान्त ५६, विद्याधर और जादूगर में अन्तर ५६, विद्याधर और पेशेवर मन्त्रवादी ५६, विद्याधरों की मन्त्र-परायणता, क्या और कैसे ? ५६, आधुनिक विद्याधर और उनकी विद्याएँ ६०, विद्या के आविष्कारार्थ अपना प्राणार्पण करने वाले भी ६१, प्राचीन विद्याधर, जो विद्याधर कुल के न थे ६२, रससिद्ध नागार्जुन का दृष्टान्त ६३, विद्या एवं मन्त्र : जीवन के तट पर ६४, मन्त्र : मननशीलता ६५, बीरबल की समझदारी - दृष्टान्त ६६, विचारशीलता के लिए राजा भोज का दृष्टान्त ६७ । ४४. मूर्ख नर होते कोप-परायण ४५-६८ Jain Education International मूर्ख की मूर्खता : जीवन - रत्न व्यर्थ फेंकना ६६, मूर्ख के लक्षण और पहचान ७०, दो शताब्दी पूर्व यूरोप अन्धविश्वासों का केन्द्र था ७४, मूर्ख के पाँच चिह्न ७६, मूर्ख की बारह दोषपूर्ण आदतें ७८, मूर्ख मनुष्यों के कुपित होने के कारण ७८, वाद-विवाद ७८, क्षणे रुष्टाः क्षणे तुष्टाः ८१, कलहप्रिय एवं छिद्रान्वेषक - मूर्ख ८१, अपना दोष दूसरों के सिर मढ़ना - मूर्ख का लक्षण ८२, व्यर्थ का झगड़ा : मूर्खता की निशानी ८४, पूर्वाग्रह : मूर्खता का चिह्न ८४, जरा-सी बात पर भड़क जाना — मूर्खता का चिह्न ८५, मूर्ख व्यक्ति छह बातों से जाना जा सकता है ८७, मूर्ख क्रोध करता ही नहीं, कराता भी है ८७, कोपपरायणता से हानि या लाभ ? ८८ । For Personal & Private Use Only ६६-८६ www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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