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अनुक्रमणिका
(आनन्द प्रवचन : भाग १०) ४१. दुष्टाधिप होते दण्ड-परायण-१*
१-१७ अधिप क्यों और किसलिए बनाया गया था ? १, अधिप के कितने रूप ? ३, 'अधिप' शब्द का अर्थ ४, अधिप में गुण और योग्यता ४, अधिप की श्रेष्ठता अधिकार में नहीं, त्याग-बलिदान में है ४, अहमदाबाद के नगर सेठ खुशालचन्द के त्याग का दृष्टान्त ५, अधिप बड़ा क्यों माना जाता है ? ६, जयपुर के प्रधान जैन मन्त्री का प्राणोत्सर्ग-दृष्टान्त ७, अधिप ही सच्चा जन-नेता होता है १०, बड़प्पन प्रगट होने के तीन गुण ११, अधिप महान होते हुए भी सहृदयता नहीं चूकता १२, अधिप अपनी पूर्वस्थिति को नहीं भूलता १२, सच्चा अधिप गुणवृद्धि के लिए प्रयत्नशील १३, कर्तव्यनिष्ठ ही सच्चा अधिप है १४, अधिप को मौका आने पर विषपान भी करना पड़ता है १६, अधिप दुष्टता त्यागें, शिष्टता अपनाएं १६ ।। दुष्टाधिप होते दण्ड-परायण-२
१८-४४ राज्याधिप को ही अधिप क्यों माना गया है १८, शासक अथवा राजा के गुण-विभिन्न ग्रन्थों से उद्धरण १६, धर्म-परायणता के बारे में राजा चक्कवेण का दृष्टान्त २१, सर्वश्रेष्ठ राज्याधिप कौन २२, शिष्ट राज्याधिप : न्याय में सुदृढ़ २३, काशी के राजा की न्यायप्रियता का दृष्टान्त २३, शेरशाह की न्यायप्रियता का दृष्टान्त २७, श्रेष्ठ राज्याधिप में प्रजावत्सलता ३०, श्रेष्ठ राज्याधिप के राज्य में कोई चोर, डाकू, अनाचारी नहीं ३१, श्रेष्ठ राजा प्रजा की पीड़ा जानने के लिए गुप्त वेश में घूमता है ३२, रूस के सम्राट (जार) आइडॉन का दृष्टान्त ३२, जैसा राजा, वैसी प्रजा ३३, जो जनता के हृदय पर शासन करे, वही उत्कृष्ट राजा ३४, राज्याधिप कैसे बिगड़े ? कैसे दुष्ट हुए ? ३५, राजा को नीतिकारों के परामर्श-विभिन्न ग्रन्थों से उद्धरण ३६, दुष्ट राज्याधिप दण्डपरायण क्यों हो जाता है ? ३७, दुःखविपाकसूत्र से दुष्टाधिप दुर्योधन का दृष्टान्त ३८, राज्याधिप की अति कठोर दण्ड
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प्रवचन संख्या भाग आठ से प्रारम्भ होती है। १ से २० तक प्रवचन भाग आठ में; प्रवचन २१ से ४० तक भाग नो में आ चुके हैं।
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