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सुसाधु होते तत्त्वपरायण-२ १२७ आचार्य शंकर की जगह और कोई शुष्क तत्त्ववादी होता तो चाण्डाल की खोपड़ी फुड़वा देता, किन्तु पूर्वाग्रह को न छोड़ता, न सत्य तत्त्व को क्रियान्वित करता । तत्त्वनिष्ठ पुरुष में यह विशेषता होती है कि वह सत्य को शीघ्र अपना लेता है।
तत्त्वज्ञानी आन्तरिक एवं शाश्वत सौन्दर्य को देखता है तत्त्वज्ञान से विहीन साधारण जन संसार की सभी वस्तुओं-देह, गेह, खाद्य पेय आदि के बाह्य सौन्दर्य एवं चमक-दमक को देखकर प्रसन्न होता है, उसमें आसक्त हो जाता है, परन्तु तत्त्वदृष्टा पुरुष बाह्य सौन्दर्य नहीं देखता, वह वस्तु के आन्तरिक सौन्दर्य, सुन्दर स्वभाव, सुन्दर के साथ सत्यं एवं शिवं की शोभा को देखता है। साँप और मोर बाहर से कितने सुन्दर दिखते हैं, मगर उनकी प्रकृति में सुन्दरता नहीं है, उनके अन्तर् में उज्ज्वलता नहीं है। बगुला और हंस दोनों ही बाहर से तो श्वेत एवं स्वच्छ लगते हैं, अन्दर से दोनों के स्वभाव के सौन्दर्य में रात-दिन का अन्तर है। कोयल और कौआ दोनों एक-से काले हैं, दोनों की आकृति भी प्रायः एक सी मिलती है। परन्तु दोनों की वाणी और प्रकृति में महान अन्तर होता है। तत्त्व दृष्टा वस्तु के आन्तरिक सौन्दर्य को देखता है, और तत्त्वविमुख देखता हैबाह्य रूप-रंग को जिसके कारण वह बहुत-सी बार धोखा खा जाता है।
बौद्ध ग्रन्थों में वर्णन है-मगध सम्राट बिम्बिसार' तथागत बुद्ध के स्वागत की तैयारियाँ करा रहे थे । तथागत बुद्ध लोकयश को यथा उच्च-नीच के भेद को निःसार बताते थे। जीव मात्र परस्पर समता, सहयोग और शुचिता से सुखपूर्वक जीवन बिताएँ। वे छोटे बनकर रहना पसन्द करते थे, इसलिए राजकीय अतिथि होते हुए भी उन्होंने राजभवन की अपेक्षा वेणुवन में निवास करना पसन्द किया।
आज एक सामान्य परिचारिका से लेकर मगधनरेश तक सुसज्जित होकर तैयार थे उनके स्वागत के लिए, सिर्फ मगध सम्राज्ञी क्षेमा अब तक तैयार न थी, वह अन्यमनस्क थी, अन्तःपुर के स्वाध्याय कक्ष में बैठी आचार्य धर्मपाल का जीवन दर्शन पड़ रही थी। तथागत बुद्ध के परम निष्ठावान शिष्य सागलनरेश की पुत्री क्षेमा के अन्तःकरण में तथागत के प्रति उपेक्षा भाव खटकने वाला था। स्वयं नरेश ने उपस्थित होकर कहा-“प्रियतमे ! सारा राजप्रासाद तथागत की अगवानी के लिए तैयार है, लेकिन तुमने अभी तक परिधान भी नहीं बदले । राजकुल के अतिथि की अवमानना अच्छी नहीं, उठो, स्वागत हेतु शीघ्र तैयार हो जाओ।"
महारानी क्षेमा ने करवट के साथ पुस्तक का पृष्ठ बदलते हुए कहा-"जिस व्यक्ति के लिए संसार और सौन्दर्य निःसार हो, उस व्यक्ति के सम्मुख जाकर संसारी मानव क्या करे ? वहाँ जाने पर यही प्रवचन सुनने को मिलेगा—यह संसार भ्रम
१ उस समय बिम्बसार (श्रेणिक) राजा बौद्धधर्मानुयायी थे।
-सम्पादक
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