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आनन्द प्रवचन : भाग १०
राजा जब पहुँचा तो उसने ज्ञानी साधु को प्रणाम किया और जिज्ञासुभाव से उनके समक्ष बैठा। तत्त्वज्ञानी साधु ने राजा का चेहरा उदास और खिन्न देखकर जान लिया कि यह किसी विपत्ति का मारा हुआ है। अतः राजा से उदासी एवं खिन्नता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कष्टकथा सुनाई और कहा"महात्मन् ! इससे तो अच्छा है, मैं एक साधारण मनुष्य रहता, राजा न बनता, क्योंकि मेरे सामने पांच वर्ष बाद मौत नाचती दिखाई दे रही है, वह इन सब सुखसाधनों को दुःखसाधन बना रही है। मुझे ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे मैं इस दुःख से मुक्त हो सकू।"
तत्त्वज्ञ साधु ने राजा की सारी आपबीती सुनकर शान्ति से उत्तर दिया"राजन् ! तुम्हारे हाथ में अभी लगभग पांच वर्ष तो हैं न ? फिर क्यों चिन्ता करते हो ? पाँच वर्ष में तो तुम अपने सारे दुःखों से मुक्त हो सकते हो।" ___राजा-"महात्मन् ! वह कौन-सा उपाय है, जिससे मैं दुःख से मुक्त हो सकें।"
तत्त्वज्ञ साधु ने कहा-"उपाय तुम्हारे हाथ में है। सर्वप्रथम तो तुम्हें अपने मन से इस ममत्व को हटा देना है कि राज्य, वैभव, ठाठ-बाट, खजाना, सुख-साधन आदि मेरे हैं। साथ ही तुम्हें अपने शरीर और शरीर से सम्बन्धित परिवार, जनता आदि सचेतन एवं धन, वैभव, राज्य आदि अचेतन वस्तुओं पर से मेरेपन का भाव हटा लेना है। यह सोचना है, ये सब चीजें मेरी नहीं हैं, मेरी तो सिर्फ आत्मा है, जो कभी नष्ट नहीं होती। अगर शरीर आदि सभी वस्तुएँ तेरी होती तो तुझ से कभी अलग क्यों होतीं ? ये सब चीजें नाशवान हैं, तेरी नहीं हैं, सिर्फ संयोग के कारण तू इन्हें अपनी मान बैठा है। यह ममत्व जिस दिन मेरे चित्त से हट जायगा, बस फिर दुःख का नामोनिशान न रहेगा।" भगवान महावीर ने कहा है
दुक्खं हयं जस्स न होई मोहो। "जिसका इन पर-भावों पर से मोह हट जाता है, समझ लो, उसका दुःख नष्ट हो गया।"
यह उपाय राजा के गले उतर गया और उसी दिन से राजा ने ममत्व-त्याग की साधना प्रारम्भ कर दी । आप माने या न मानें, एक ही महीने में राजा के चित्त में शान्ति हो गई। . एक दिन फिर जब राजा प्रसन्नचित्त होकर तत्त्वज्ञ साधु के पास पहुंचा तो उसने दूसरा पुण्यमय उपाय बताया-"राजन् ! अब दूसरा उपाय यह करो कि तुम्हारे पास अपार सम्पत्ति है, उससे इस भयानक जंगल को बस्ती में बदल दो, नया नगर बसा दो। और जो भी इसमें बसना चाहे, उसके लिए पांच वर्ष तक फ्री आवास का प्रबन्ध कर दो। उन नवीन नगरवासियों को सब तरह की सुख-सुविधाएँ दो,
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