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मूर्ख नर होते कोपपरायण ७७ "मूर्ख के पाँच चिह्न हैं-(१) अभिमानी, (२) दुर्वचन बोलने वाला, (३) हठी, (४) कटुभाषी और (५) दूसरों का कहना न मानने वाला ।"
मूर्ख अभिमानी और हठी होता है, इसी कारण वह दूसरों का कहना नहीं मानता, न पूरा सुनता-समझता है । वह अपनी धुन में उल्टे-सीधे काम करता रहता है । साथ ही कोई उसे अच्छी बात कहता है तो झल्ला उठता है और उसे ही दुर्वचन कहने लगता है, कड़वी और चुभती, बिना प्रसंग की बात कह देता है।
एक गाँव में एक बार चार मुर्ख आये और धर्मशाला में ठहर गये । रात को उन्हें दिया जलाने के लिए तेल की जरूरत पड़ी तो उनमें से एक मूर्ख एक रुपया लेकर तेली के यहाँ पहुंचा । वहाँ वह तेली की ओर घूरकर देखने लगा तो तेली ने पूछा- “क्या देखता है ?" उसने कहा- "मैं यह देखकर चिन्तित हूँ कि मरने पर आपके इतने मोटे शरीर की अर्थी उठाने वालों के कन्धे कितने छिल जाएँगे ।" तेली ने उसे फटकार दिया- "भाग जा मूर्ख ! यहाँ से ।" उसने धर्मशाला पहुँचकर दूसरे मूर्ख को रुपया देकर तेली के यहाँ से तेल ले आने को कहा । वह भी उसी का भाई था । तेली को देखकर बोला- "एक बैल पड़ौसी से माँग लेना, ताकि मरने पर आपकी लाश को आसानी से बैलगाड़ी में डालकर श्मशान में ले जाया जा सके, अन्यथा कन्धे छिल जाएँगे अर्थी उठाने बालों के।" तेली ने नाराज होकर उसे पीट कर भगा दिया।
। अब तीसरा मूर्ख तेल लेने आया तो उसने भी गम्भीर होकर तेली से कहा"मरने पर आपके शव को श्मशान में ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, इसी कोल्हू में रखकर जलाया जा सकेगा । ऐसा करने से न किसी के कन्धे छिलेंगे और न ही बैल माँगकर लाना पड़ेगा।" तेली ने तीसरे की भी खूब मरम्मत करके उसे भगा दिया। कहा- "मूर्ख ! यहाँ तेल लेने आया है या किसी की मौत बुलाने ? जा, तुझे तेल नहीं मिलेगा।" वह मुंह लटकाए धर्मशाला लौटा और सारी आपबीती कह सुनाई । अब चौथे मूर्ख की बारी थी, तेल लाने की । वह पहुँचा रुपया लेकर तेली के पास और तेल माँगा।
तेली ने कहा- 'तेल किसमें लोगे ?" वह बर्तन लाना तो भूल ही गया था। अतः सामने ही भैरोंजी के मन्दिर से धूपदानी उठा लाया, जो दोनों ओर कटोरीनुमा होती है। तेली ने उसमें तेल भर दिया, किन्तु बचा हुआ तेल भरने को दूसरा बर्तन माँगा तो उस मुर्ख ने धूपदानी ही उलटकर उसके सामने धर दी। पहले वाला तेल तो सारा का सारा गिर ही गया था । बचा हुआ तेल धूपदानी के दूसरी ओर भरवा कर धर्मशाला लौटा। उसके साथियों ने पूछा- "बाकी के तेल का क्या हुआ ? कहाँ रख आए ?" तब उस मूर्ख ने तपाक से धूपदानी को उलटकर बता दिया कि बाकी का तेल इस प्रकार गिर गया। चारों मूर्ख अपनी मूर्खता के
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