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________________ सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ ६७ बुद्धिमानों के लिए ऐसी कोई भी बात नहीं है, जिसे वे न जान सकें। ऐसी सात्त्विक बुद्धि में हजार हाथों से ज्यादा ताकत होती है। उसकी स्फुरणाशक्ति इतनी तीव्र होती है कि वह उससे क्रुद्ध और गलतफहमी के शिकार व्यक्ति को तुरन्त शान्त एवं प्रसन्न कर सकता है। एक राजा ने किसी कार्यवश अपने नगर के प्रतिष्ठित सेठ को बुलवाया। बीमार होने से सेठ ने अपने बदले मुनीम को भेजा। साथ ही सेठ ने मुनीम को हिदायत दी कि यदि राजा ऐसा पूछे तो ऐसा उत्तर देना और ऐसा पूछे तो ऐसा । मुनीम ने सविनय पूछा- "इन बातों के सिवाय और कोई बात पूछ ली तो?" सेठ ने कहा--"फिर तो तुम्हारी सूझबूझ ही काम देगी। तुम अपनी शुद्ध स्फुरणाशक्ति से उत्तर दे देना।" ___मुनीम को जाते समय सेठ ने मनुष्य के केशों से भरी एक सोने की डिबिया दी और कहा-"राजा के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। इसलिए मेरी ओर से यह डिबिया उन्हें भेंट दे देना। मुनीम को मालूम नहीं था कि इस डिबिया में केश हैं । उसने राजदरबार में जाते ही राजा को नमस्कार करके सेठ की ओर से डिबिया भेंट कर दी। राजा ने जब वह डिबिया खोली तो उसमें मनुष्य के केश देखकर मुनीम और सेठ पर अत्यन्त क्रुद्ध हो गया। मुनीम ने बात बिगड़ती देखकर कहा -"महाराज ! सेठजी ने ये केश भेजे हैं, वे किसी सामान्य व्यक्ति के नहीं, हिमालय निवासी सिद्ध योगी के हैं, ये सर्वार्थसिद्धिकारक केश हैं।" यह बात सुनते ही राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और इनाम देकर मुनीम को विदा किया। इसीलिए अंग्रेजी में एक कहावत है-- "A good head has hundred hands.” 'एक अच्छे मस्तिष्क के सौ हाथ होते है।' तात्पर्य यह है कि सौ हाथों से साधारण आदमी जितना काम करता है उतना काम एक बद्धिमान व्यक्ति अकेले मस्तिष्क से कर लेता है। ऐसी सुबुद्धि केवल पढ़ने-लिखने से नहीं आती। संसार में पढ़े-लिखे तो लाखों-करोड़ों हैं, परन्तु संकट के समय या समस्या आ पड़ने पर उनकी बुद्धि कुण्ठित हो जाती है। उलटे पढ़े-लिखे शान को जब बुद्धि का मार्गदर्शन नहीं मिलता तो वह अड़ियल टटू की तरह अपने सवार को फैंक देती है। इसलिए बुद्धि के कार्य की मीमांसा करते हुए पाश्चात्य लेखक स्परजियन (Spurgeon) कहता है "Wisdom is the right use of knowledge. To know is not १ देखिये पाश्चात्य विचारक के विचार - "Knowledge, when wisdom is too weak to guide her, is like .. - a headstrong horse that throws the rider." Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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