________________
सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ ६१ सुलतान गौरी ने चढ़ाई करके जीत लिया। उसे भी मुस्लिम सल्तनत के अधीनस्थ हो कर रहना पड़ा।
यह है मारकबुद्धि का विनाशक परिणाम ! परन्तु तारकबुद्धि विनाशक के बदले कल्याणकारिणी और सर्जक होती है । मारकबुद्धि नियन्त्रणरहित होती है, जब कि तारकबुद्धि पर धर्म और अध्यात्म का अंकुश होता है।
तारकबुद्धि का पलायन : मारकबुद्धि का आगमन यह ठीक है कि मनुष्य शारीरिक बल से नहीं, बुद्धिबल से ही अपनी जीवनयात्रा सुखद एवं सुचारुरूप से चलाता आ रहा है। आगे चलकर मानव की बुद्धि का पर्याप्त विकास तो हुआ, लेकिन उस पर अंकुश न रह सका। यों तो बड़े-बड़े युद्धों का संचालन एवं राज्य पर नियन्त्रण बुद्धिबल से होता है। राष्ट्रों का नेतृत्व एवं शासन-व्यवस्था भी बुद्धिशक्ति पर निर्भर है। व्यापार, व्यवसाय, उद्योग, व्यवहार उपाय और योजनाएँ सब बुद्धि के अधीन चलती हैं। तात्पर्य यह है कि संसार में जो कुछ भी सृजनात्मक या ध्वंसात्मक क्रियाकलाप दिखाई देता है, वह सब का सब बुद्धि द्वारा संचालित, प्रेरित और नियन्त्रित होता है। बुद्धि मानव के लिए एक अनुपम वरदान है। लेकिन भस्मासुर की तरह बुद्धि के इस वरदान को पाकर मानव आज संसार का सर्वनाश करने पर तुला हुआ है।
भस्मासुर की पौराणिक कहानी आपने सुनी ही होगी-भस्मासुर बड़ा शक्तिशाली असुर था। उसके मन में स्फुरणा हुई कि वह तप करके अपने को अजेय बनाले । फलतः उसने तप की योजना बनाई और हिमालय पर चला गया। भस्मासुर शरीर से भी बली था, मन से भी, सिद्धि प्राप्त करने की तीव्र लालसा भी थी। परन्तु तप में संलग्न होने से पूर्व उसकी बुद्धि परिस्कृत नहीं हुई थी, इस कारण कई वर्षों तक तप करने से शंकर जी ने प्रसन्न होकर जब उसे वरदान माँगने को कहा, तब उस दुर्बुद्धि ने यह वरदान माँगा कि 'मैं जिसके सिर पर हाथ रखू, वह भस्म हो जाय ।' असुर आखिर असुर ही रहा, तामसी बुद्धि से पिंड न छुड़ा सका। महादेव जी से वरदान पाते ही वह गर्वोन्मत्त हो उठा। उसकी सद्बुद्धि तभी पलायित हो गई, वह पार्वती को पाने के लिए अपने आराध्य महादेव जी को ही भस्म करने के लिए तत्पर हो गया। विष्णु जी को पता लगा तो वे महादेव को बचाने के लिए भुवनमोहिनी सुन्दरी का रूप बनाकर आए और भस्मासुर से कहने लगे—यदि तुम मुझे नृत्य करके प्रसन्न कर लोगे तो मैं तुम्हारी बन जाऊँगी। साथ ही उन्होंने सिर पर हाथ रखकर नृत्य करने का प्रस्ताव रखा। कामातुर अहंकारी भस्मासुर विवेक बुद्धि को तिलांजलि देकर तुरन्त अपने सिर पर हाथ रखकर नाचने को उद्यत हो गया। सिर पर हाथ रखते ही अपने प्राप्त वरदान के प्रभाव से स्वयं भस्म हो गया और वहीं भूमि पर गिर पड़ा। इस प्रकार भस्मासुर की मारकर्दु बुद्धि ही उसके विनाश का कारण बनी।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org