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आनन्द प्रवचन : भाग ६
लोभ के कारण शरीर का रोगी और मन का अस्वस्थ रहना कितना बड़ा दुःख है। ‘पहला सुख निरोगी काया', यह कहावत भारत के घर-घर में प्रचलित है। दुःखनिवारण के लिए लोभवृत्ति दूर करो
अतः सौ बातों की एक बात है, दुःखों से पिण्ड छुड़ाने और दुःखी जीवन से दूर रहने के लिए आप सभी लोभत्याग या लोभविजय का अभ्यास करें। लोभ वृत्ति नहीं होगी तो किसी प्रकार का दुःख नहीं रहेगा। गरीबी में भी सुख और आनन्द रहेगा, लोभ रहने पर अमीरी में भी दुःख रहेगा। इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में स्पष्ट कहा है--
_ 'दुःखं हयं जस्स न होइ लोहो' जिसके मन में लोभ नहीं होगा, उसका दुःख नष्ट हो जायगा । गौतम ऋषि ने दुःखी जीवन से बचने के लिए ही कहा है—"लोहो, दुहो कि ?"
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