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दुःख का मूल : लोभ
रोग हो तो वह धर्मविमुख या कर्तव्यभ्रष्ट होते देर नहीं लगाता । वह सोचता हैपिताजी तो अब जिंदगी के किनारे लग गये हैं, उन्हें तो एक न एक दिन मरना ही है, उनके लिए बेकार रुककर अपने धन लाभ के मौके को हम हाथ से क्यों जाने दें ?
लोभ से स्वास्थ्य और आयु पर गहरा प्रभाव
लोभ में एक प्रकार का गोपनीय भाव होता है । लोभी मनुष्य अपने धन को, धन रखने के स्थान को, धन कमाने की विधि को गुप्त रखने का प्रयत्न करता है । उसे हर क्षण यह चिन्ता लगी रहती है कि कहीं मेरी यह बातें प्रगट न हो जायँ । धन सम्बन्धी गोपनीय भावों का प्रवाह लोभी के जीवन में बहता रहता है । इसलिए लोभी का जीवन चिन्ता और भय से भरा रहता है और ये दोनों बातें आयु को कम करने एवं स्वास्थ्य नष्ट करने वाली होती हैं । इसीलिए शास्त्र में कहा है—
'लोहाओ दुहओ भयं
- लोभ से यहाँ और वहाँ दोनों जगह भय बना रहता है ।
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लोभी के मन में निरन्तर धन संचय करने के विचारों का प्रवाह जारी रहने से सुप्त मन पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है । वह भी संचय की नीति को अपना लेता है । फलस्वरूप शरीर में जमा करने की क्रिया अधिक और त्यागने की क्रिया कम होने लगती है । इसका असर पेट पर शीघ्र होता है । दस्त साफ होने में रुकावट पड़ने लगती है । पेट भरा रहता है, उसमें मल इकट्ठा होता रहता है । शौच के समय आँतों की माँसपेशियाँ अपने संचालक ( सुप्तमन) के आदेश का पालन करती हैं । वे त्याग में बड़ी कंजूसी करती हैं । फलस्वरूप जो मल अधिक मात्रा में है, वही निकलता है, बाकी पेट में ज्यों का त्यों पड़ा रहता है, और सड़ सड़कर अनेक विष पैदा करता है । पेट के ये ही विष रक्त में मिलकर असंख्य रोगों के घर बन जाते सड़ा हुआ मल पेट में दूषित वायु पैदा करता है । हृदय की अधिक धड़कन, सिरदर्द, निद्रा की कमी, गठियावात आदि रोग इसी दूषित विकार से होते हैं । इसी संकोचनीति के कारण त्वचा के रोमकूप पसीना अच्छी तरह नहीं निकालते और संकोचनीति के कारण ही रक्त में मिले हुए विषाक्त पदार्थ दूर नहीं होते ।
लोभी व्यक्तियों की जोड़-जोड़कर इकट्ठा करने की इच्छा शरीर में अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक व्याधियों को बुलाती है । इसीलिए तो लोभी व्यक्ति कितनी ही कीमती दवाओं का सेवन करले या बहुमूल्य भोजन भी करले, फिर भी उसके तन-मन स्वस्थ नहीं रहते ।
प्रायः धनलोलुप मनुष्य सन्तान के लिए धन नहीं चाहते, वे धन की रक्षा के लिए सन्तानरूपी चौकीदार चाहते हैं, ताकि उनके मरने के बाद भी उनका धन सुरक्षित रहे । ऐसे व्यक्तियों के सन्तान हो तो भी वे उसकी शिक्षा-दीक्षा, सदाचार और धर्मसंस्कार पर उदार हृदय से व्यय नहीं करते ।
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