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________________ ३८० आनन्द प्रवचन : भाग ६ वह बचपन से इतना बीमार और दुर्बल रहता था कि ११ वर्ष की उम्र में उसे पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी। ऐसी निराशा की स्थिति में उसने अपने चित्त को एकाग्र करके सारी शक्ति बटोरकर स्मरणशक्ति बढ़ाने में लगा दी। जो भी बातें देखता, पढ़ता और सुनता, उन पर पूरा ध्यान देता, दत्तचित्त होकर मन ही मन उन्हें कई बार दुहराता, फिर उनके कल्पनाचित्र चित्त की परतों पर कसकर जमाता, उन घटनाओं का क्रम, स्थान, समय आदि बातें दिमाग के कोष में एकत्र कर लेता । इस प्रकार की घटनाओं का विवरण ठीक-ठीक बताकर लोगों पर अपनी स्मरणशक्ति की छाप जमाता । इस मनोरंजन से लोग बहुत प्रभावित होते, उसकी अलौकिक शक्तियों की सराहना करते । दातम का यह शौक बढ़ता गया। उसने अपना सारा ध्यान अपनी स्मरणशक्ति बढ़ाने में केन्द्रित कर दिया। फलतः जो बात वह एक बार याद कर लेता, वह वर्षों तक याद रहती। धीरे-धीरे वह स्मृति का धनी ज्ञान के विश्वकोष के रूप में विख्यात हो गया । जिन तथ्यों को विस्मृति के गर्त में फेंक दिया, समझा जाता था, दातम ने उन तथ्यों को क्रमशः सन्, तारीख और समयसहित इस तरह बताया कि यूरोप के प्रभावशाली ज्योतिषियों, राजनीतिज्ञों और इतिहासविदों को आश्चर्यचकित रह जाना पड़ा। ७१ वर्ष की उम्र तक उसकी स्मरणशक्ति यथावत् बनी रही। जब वह मरा तो उसका विलक्षण मस्तिष्क ३० हजार रुपयों में खरीदा गया। दातम का पूरा नाम 'डब्ल्यू जे० एम० बाटन' था। उसके पास न तो कोई जादू था, न कोई विद्या, न ही वह जन्मजात विलक्षण प्रतिभा से युक्त था, किन्तु चित्त की एकाग्रता का ही चमत्कार था, जिसके कारण अपनी समस्त शक्तियों को उसने निरन्तर स्मृति-वृद्धि करने में केन्द्रित कर दिया और अद्भुत स्मरणशक्ति प्राप्त करके उसने जगत् के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। वास्तव में चित्त की एकाग्रता से सोई हुई आन्तरिक शक्तियाँ जाग उठती हैं, शक्तियों का जागरण और परिवर्धन होता है, जिनके बल पर वह असम्भव दिखाई देने वाले कार्यों को भी सम्भव कर दिखाता है। चित्त विक्षिप्त क्यों और उसमें बोध क्यों नहीं टिकता? ___ अब प्रश्न यह होता है कि चित्त विक्षिप्त क्यों होता है ? मनुष्य के चित्त पर जब काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि पापों का बोझ पड़ जाता है, अथवा क्रोधकाम आदि मनोविकारों पर तुरंत नियंत्रण न करने से चित्त विक्षिप्त हो जाता है। मूल बात यह है कि चित्त पर से पापों का बोझ हटने पर वह विक्षेपरहित और एकाग्र हो सकता है। जब तक मनुष्य अपने चित्त पर से पापों का बोझ नहीं हटाता, तब तक उसकी शक्तियाँ कुण्ठित एवं विक्षिप्त रहेंगी। विक्षिप्तचित्त व्यक्ति का मतलब है-पापों के बोझ से दबा हुआ। और ऐसी स्थिति में न तो वह उपदेश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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