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________________ विक्षिप्तचित्त को कहना : विलाप ३७६ करने लग गया। प्रत्येक बार पाँच-दस मिनट कम करते हुए अन्त में मैं उसी पाठ को आध घंटे में याद करने लगा। इस तरह वह चित्त की एकाग्रता का महत्त्व समझ गया और आगे चलकर उसने अनेक विद्याओं का बहुत शीघ्र अध्ययन कर लिया। चित्त की एकाग्रता से कार्य करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त हो जाती है। मैंने एक जगह पढ़ा था- 'न्यूयार्क ट्रिब्यून' का सम्पादक 'होरेस ग्रीलि' जिस समय घर के पास के रास्ते से होकर कोई बड़ा जुलूस निकल रहा हो, बड़े जोर से बैंडबाजा बज रहा हो, उस समय भी घर के दरवाजे पर बैठा सम्पादकीय लेख लिखता रहता। ये लेख इतने तथ्यपूर्ण और गंभीर होते थे कि जगह-जगह उन्हें उद्धृत किया जाता था। एक बार कटु आलोचनापूर्ण लेख से क्रुद्ध होकर एक व्यक्ति ने 'न्यूयार्क ट्रिब्यून' के कार्यालय में पहुँचकर सम्पादक से मिलना चाहा। अतः उसे ७ फीट चौड़ी और ६ फीट लम्बी एक कोठरी में पहुँचा दिया गया, जहाँ ग्रीलि टेबल पर अपना सिर झुकाए बड़ी फुर्ती से लिखता जा रहा था। आगन्तुक ने आते ही पूछा-"आप ही ग्रीलि ग्रीलि ने कागज पर से नजर उठाये बिना ही उत्तर दिया-"जी हाँ, आपको क्या काम है ?" उस क्रुद्ध व्यक्ति ने फिर सभ्यता, कुलीनता, बुद्धि सबको ताक में रखकर अपनी जीभ की लगाम ढीली छोड़ दी। लगभग २० मिनट तक उसने आक्षेपों और गालियों की ऐसी बौछार की, जैसी कभी न सुनी गयी थी। किन्तु ग्रीलि उस तरफ जरा भी ध्यान दिये बिना और चेहरे का रंग जरा भी बदले बिना पूर्ववत् भावपूर्ण लेख लिखता रहा । जितनी तेजी से उस व्यक्ति की जबान चलती रही, उतनी ही तेजी से ग्रीलि की कलम भी चलती रही। इस दौरान उसने कई पृष्ठ लिख डाले । अन्त में जब गुस्सा करने वाला व्यक्ति थककर कोठरी से बाहर जाने को तैयार हुआ, तब ग्रीलि अपनी कुर्सी से उठा और उस व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखकर बोला-"मित्र ! जा क्यों रहे हो ? बैठो और अपना हृदय खाली करो। उससे तुमको यह लाभ होगा कि तुम्हारा कलेजा ठंडा हो जाएगा, साथ ही मैं जो कुछ लिख रहा हूँ, उसमें भी वह सहायक सिद्ध होगा।" __बन्धुओ ! यह सब चमत्कार ग्रीलि द्वारा एकाग्रचित्त होकर काम करने की शक्ति का था। किसी कार्य में निष्ठा, लगन, तत्परता, तीव्रता आदि सब चित्त की एकाग्रता के कारण होती है । एकाग्रता से उत्पन्न शक्ति को वह जिस कार्य में लगा देता है, उसी क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति का प्रमाण प्रस्तुत करता है। चाहे ऐसा व्यक्ति निर्धन और साधनविहीन हो, अंगहीन हो, कुरूप हो, रुग्ण हो अथवा दुर्बल, इससे उस एकाग्रचित्त के धनी व्यक्ति की प्रगति में कोई अन्तर नहीं पड़ता। इंग्लैण्ड के केंट कस्बे में एक अति निर्धन मोची परिवार में जन्मा दातम एक दिन अद्भुत स्मरणशक्ति का धनी कैसे बन गया, इसकी भी एक रोचक कहानी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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