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________________ ३५६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ भोलीभाली साध्वियों ने यतियों के कथनानुसार वैसे ही रटना शुरू किया। कुछ देर बाद जब उनकी गुरुणीजी आई। उन्होंने अमंगलसूचक शब्द सुने तो चौंकी और उन्हें डांटडपटकर शुद्ध पाठ बताया। अर्थ फिर भी न समझाया। इसी प्रकार एक गांव में साध्वियां पधारी हुई थीं। एक अनपढ़ किन्तु श्रद्धालु बहन उनसे सामायिक के पाठों में 'लोगस्स' का पाठ सीख रही थी। वह साध्वीजी से पाठ लेकर घर जाकर रटती थी। साध्वीजी उसे अर्थ नहीं समझाकर यही कह देती कि यह चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति का पाठ है, इसे रट लो।" . बेचारी अर्थ से अनभिज्ञ श्रद्धालु बहन 'लोगस्स' के पाठ में आए हुए 'पहीणजरमरणा' पाठ का अर्थ न समझने के कारण उसके बदले रटने लगी-'पीहर जार मरणा' । कुछ ही देर बाद उसका पति आया और उसने जब अपनी पत्नी को इस प्रकार पाठ रटते हुए सुना तो पूछा-"यह पाठ किसने बताया है तुम्हें ?" वह बोली"गुरुणीजी ने मुझे यह पाठ रटने को दिया है। क्यों क्या हुआ ?" उसका पति मुस्कराते हुए बोला-"कुछ अर्थ भी समझती हो या यों ही अंटसंट रटे जा रही हो ?' भोली पत्नी ने कहा- "मुझे तो इसका कुछ भी अर्थ नहीं समझाया, गुरुणी जी ने, केवल पाठ रटने को दिया है।" पति ने कहा- 'भोली भामण ! पाठ भी तो तुम गलत रट रही हो, इस पाठ का अर्थ होता है-'पीहर जाकर मरना' ऐसा अशुद्ध पाठ गुरुणीजी तो दे नहीं सकतीं । तुमने ही अपने मन से बना लिया है।" आखिर वह भोली बहन गुरुणीजी के पास पहुंची और उस पाठ को शुद्ध रूप में सीखा। ___ एक जगह एक अनपढ़ लड़की को थोड़ा बहुत अक्षरज्ञान कराकर साध्वी बना दिया गया। उसकी गुरुणी एक दिन नमस्कार मंत्र का ‘एसो पंच नमुक्कारो' पाठ देकर गोचरी चली गई। थोड़ी देर रटने के बाद उसने रटना बन्द कर दिया। जब गुरुणी को आते देखा तो जोर-जोर से रटने लगी- "एसा पंचानो मुं(ह) कारो (लो)" । गुरुणी ने सुना तो उसकी मूढ़ता साथ ही अपनी अज्ञता पर तरस खाने लगीं। ऐसी और भी कई घटनाएँ हैं, जो उपदेशकवर्ग की अनभिज्ञता और इस ओर शुद्ध मार्गदर्शन की लापरवाही को सूचित करती हैं। ऐसी घटनाओं को आप प्रायः हंसकर टाल देते हैं, परन्तु आप लोगों को इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए, और ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे साधुसमाज विवेकी, तत्त्वज्ञानी और शास्त्र के पाठों का रहस्यज्ञ बने, अन्यथा ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहने से साधुसमाज एवं जिनशासन की बदनामी और अवहीलना होने की आशंका है। अन्धे मार्गदर्शक : अन्धे अनुगामी __ एक बात निश्चित है कि जिस मार्गदर्शक में स्वयं उस मार्ग, अध्यात्मज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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