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________________ परमार्थ से अनभिज्ञ द्वारा कथन : विलाप ३५५ समर्थ रामदास शिवाजी के गुरु थे। किसान ने समर्थ रामदास को पीटा, यह खबर उड़ती-उड़ती शिवाजी के कानों में पहुँची। शिवाजी ने कुछ सिपाहियों को भेजकर उस किसान को गिरफ्तार करवाया और समर्थ रामदास के सामने उपस्थित करते हुए कहा-"गुरुदेव ! बताइए इस किसान को क्या दण्ड दिया जाए ?" बेचारा किसान शिवाजी का प्रकोप देखकर काँप रहा था। समर्थ रामदास ने कहा- "इसका क्या अपराध है ? अपराध तो मेरे शिष्यों का है, जिन्होंने इससे बिना पूछे ही गन्न तोड़े। मैंने अपने शिष्यों को साधुता का आधूरा ज्ञान दिया, इसका दण्ड मुझे मिल गया। अतः इसे छोड़ दो और इसका जितना नुकसान हुआ है, उससे दुगुना सरकारी खजाने से भर दो।" फलतः शिवाजी ने उस किसान को छोड़ दिया और उसकी क्षतिपूर्ति कर दी। कहने का मतलब यह है कि समर्थ रामदास को अपने शिष्यों को साधुता का अधूरा ज्ञान देने के कारण उसका दुष्परिणाम भोगना पड़ा। साधु-साध्वियों द्वारा बताये गये अधूरे अर्थ के दुष्परिणाम कई बार साधु-साध्वी अपने भक्त-भक्ताओं को जो भी नित्यनियम, या त्यागप्रत्याखान कराते हैं या उनका जो पाठ है, उन्हें रटने के लिए दे देते हैं, उनका अर्थ, विधि, या उद्देश्य पूरी तरह से नहीं समझाते । कई साधु-साध्वी स्वयं भी उन. पाठों का अर्थ, विधि या उद्देश्य पूरी तरह से नहीं समझते, वे गुरु परम्परा से उस पाठ को रट लेते हैं, वह भी कई दफा गलत-सलत; इसी प्रकार वे अपने भक्त-भक्ताओं को पाठ रटा देते हैं, कई बार उसका मामूली अर्थ समझा देते हैं, अतः अन्धश्रद्धावश या गुरु पर विश्वास करके वे उस पाठ को रटते रहते हैं । ऐसा तोतारटन न तो उस धार्मिक क्रिया का वास्तविक फल प्रदान करता है और न ही उससे अपना कल्याण होता है, बल्कि कई बार अनर्थ भी हो जाता है। बेसमझी से पाठ रटने वाले का श्रम, शक्ति और समय बेकार जाता है। - कुछ सच्ची, किन्तु मनोरंजक घटनाएँ लीजिए एक जगह उपाश्रय में बैठी दो साध्वियाँ दशवकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन का 'धूअमोहा जिइंदिया' इस पाठ को इस प्रकार अशुद्ध रट रही थीं-'दोय मुआ जत्तिया । उनकी गुरुणीजी ने शायद उन्हें ठीक तरह से पाठ समझाया या रटाया नहीं था। वे कहीं किसी को दर्शन देने गई हुई थीं। फलतः इस पाठ को 'चोय मुआ जत्तिया' के रूप में गलत रटते सुना उपाश्रय के पास से होकर जाते हुए दो यतियों ने । सुनकर उनका माथा ठनका। उन्होंने सोचा-ये साध्वियां तो हमारे लिए अमंगलसूचक शब्द कह रही हैं। इन्हें समझाना चाहिए। अतः दोनों यति उपाश्रय में पहुँचे और दोनों साध्वियों को गलत रटते देख उसका अर्थ पूछा तो उन्होंने कहा- "इसका अर्थ गुरुणीजी बाद में बताएँगी।" तब यतियों ने उनसे कहा-'ऐसे नहीं, ऐसे टो-'दोय मुआ अज्जिया'।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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