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आनन्द प्रवचन : भाग ६
मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि गोवर्द्धन ने एक दिन अपनी पत्नी से कहा"मैं एक भैंस लाना चाहता हूँ, ताकि हम सबको शुद्ध दूध-दही, घी आदि प्राप्त हो सकें।"
पत्नी बोली-"बहुत अच्छी बात कही आपने । इस कार्य में देर न करें। आज से ही इस कार्य के लिए प्रयत्न करें। मैं शीघ्र ही अपने घर में भैंस देखना चाहती
गोवर्द्धन- "मेरा इरादा पक्का है, लेकिन उतावली में भैंस नहीं खरीदूंगा। अच्छी तरह देखभाल कर भैंस लाऊँगा। कोई ऐसी-वैसी भैंस घर में बँध गई तो फिर पश्चात्ताप करना पड़ेगा।"
पत्नी ने कहा-“परख तो अवश्य करें, लेकिन बिलम्ब न करें । मेरी मां रुग्ण रहती है । वह इन दिनों काफी कमजोर हो गई है । वैद्यजी ने उसे मक्खन-मलाई खाने को कहा है । तो मक्खन-मलाई उसके भी काम आएंगे। मेरे छोटे भैया को भी दूध भेज दिया करूंगी।"
पति का पत्नी के प्रति प्रेम होता है, वह उसे खिला सकता है, लेकिन जब पत्नी ने अपनी मां और भैया को दूध-मलाई खिलाने की बात कही तो गोवर्द्धन सहन न कर सका । अतः उसका चेहरा आक्रोश से भर उठा। पति की बदली हुई मुखाकृति देखकर पत्नी ने पूछा- “मैंने तो कोई ऐसी-वैसी बात नहीं कही है, फिर आपका चेहरा क्यों बदल गया ?"
गोवर्द्धन-"मेरा तो चेहरा ही बदला है, तेरा तो दिल-दिमाग बदल चुका है। इसीलिए तो आज बहकी-बहकी-सी बातें कर रही है।"
_पत्नी ने गर्म होकर कहा-"हूँ ! मेरे दिल-दिमाग कैसे बदल गये ? क्या देखा आपने ?"
___ गोवर्द्धन को भी पत्नी के शब्द कांटे-से चुभने लगे। वह गुस्से में तमतमाकर बोला-"कितनी बढ़िया बात कही है तूने ? भैंस खरीदकर लाऊँगा मैं, और मक्खनमलाई खाएगी तेरी माँ ! दूध पीएँगे तेरे भैया ! यह कदापि नहीं हो सकता।"
बात ही बात में दोनों में गर्मागर्म बहस होने लगी, बात बहस तक ही न रुकी दोनों हाथापाई और गाली-गलौज पर उतर आए । कवि ने ठीक ही कहा है
मुख खुल जाता क्रोध में, आँखें होती बन्द । रहता नहीं कुछ क्रोध में, चिन्तन से सम्बन्ध । मुख से चलती गालियां, चलते दोनों हाथ । क्रोध किया करता यहाँ, शान्तिघात उत्पात ।।
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