SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२१ पति ने कहा- 'यहाँ और कोई उपाय नहीं है सिवाय पानी में होकर चलने के । महावर खराब हो जाए तो फिर लगा लेना।" लेकिन वह फैशनेबल पत्नी इसके लिए तैयार न हुई। कहने लगी- "मुझे साथ में लाए हैं तो क्या मेरी इतनी-सी बात भी नहीं मानेंगे। जैसे भी हो, आपको ऐसा उपाय करना होगा, जिससे महावर न छूटे।" बस, पत्नी का इतना कहना था कि पति का पारा चढ़ गया। उसकी भौहें तन गईं, आँखें लाल हो गईं। वह अपनी पत्नी से बोला-"हूँ, तेरे पैरों में लगे महावर का रंग नहीं छूटना चाहिए, और चाहे जो हो, मैं ऐसा ही उपाय करूंगा।" इतनीसी बात कहकर उसने अपनी पत्नी के दोनों पैर अपने हाथों से पकड़े और शीर्षासन करा दिया, सिर नीचे और पैर ऊपर ! सिर नीचा होने से उसके मुंह एवं नाक में पानी भरने लगा। वह घसीटता हुआ अपनी पत्नी को नदी के दूसरे किनारे पर ले गया । नदी पार क्या की, पत्नी को ही उसने पार कर दिया । नाक-मुँह में पानी भर जाने से उसका दम घुट गया, वहीं दम तोड़ दिया उसने । नदी के दूसरे तट पर पहुँचने पर लोगों ने उस क्रोधाविष्ट पति से कहा- "मूर्ख ! यह क्या गजब कर डाला? नारी-हत्या !" उसने कहा- 'मैंने तो अपनी पत्नी की इच्छा पूरी की है। प्राण भले ही चले गये, उसके महावर का रंग तो सही सलामत है।" वास्तव में ऐसे कोधाविष्ट, जिद्दी और झक्की मनुष्य जहाँ मिल जाते हैं, वहाँ जीवन का सर्वनाश निश्चित है । वह वर्षों की बनी-बनाई बात को क्षणभर में बिगाड़ देते हैं। बहुत-से दूकानदारों की दुकान केवल इसलिए नहीं चलती कि उनका स्वभाव क्रोधी या चिड़चिड़ा होता है। वे अपने ग्राहकों से बात-बात में झगड़ बैठते हैं, गालियाँ दे बैठते हैं या उन्हें मार बैठते हैं। क्रोधावेश पर संयम न होने के कारण बहुत-से लोगों का जीवन बुढ़ापे में अत्यन्त कष्टमय हो जाता है। वे क्रोधावेश में आकर अपनी जबान और मिजाज को काबू में नहीं रख सकते । जब जो मुंह में आता है, वही कह देते हैं। इस प्रकार बौद्धिक क्षीणता के कारण वे न तो स्वयं किसी के साथ प्रसन्नता से रह सकते हैं और न ही किसी के साथ काम कर सकते हैं। क्रोधाविष्ट होना कार्यसिद्धि में पहला विघ्न नीतिवाक्यामृत में स्पष्ट कहा है_ 'उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु सिद्धीनां प्रथमोऽन्तरायः' 'गर्म हो जाना, सभी कार्यों की सिद्धि में पहला विघ्न है।' आज अधिकांश लोग कार्य प्रारम्भ करने से पहले ही गर्म हो जाते हैं। कई लोग तो बिना मतलब के गर्म हो जाते हैं। जिससे उनका काम भी नहीं बनता और लोगों में भी वे हँसी के पात्र बनते हैं। बाद में तो वे भी अपनी भूल पर बहुत ही लज्जित होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy