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________________ २९२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ पेटूराम के तीन देव सदा अंगीठी दाहिनी, सम्मुख पड़ी परात। तीन देव रक्षा करें, दाल, फुलकिया, भात ॥ ग्वाले के तीन देव सदा भैसिया सामने, कछकी लीनी काछ । तीन देव रक्षा करें, दूध, दही और छाछ । राशन के व्यापारी के तीन देव कम तोलूँ तो लै नहीं, ग्राहक घुड़की देत । तीन देव रक्षा करें, कंकड़, मिट्टी, रेत ।। फसली नेता के तीन देव खद्दर का जामा पहिन, उसमें रख ली पोल । तीन देव रक्षा करें, ब्लैक, घूस, कंट्रोल ॥ है न यह स्वार्थतंत्र का बोलबाला ! एक कवि एक स्वार्थवीर व्यक्ति पर व्यंग कसते हुए कहता है स्वारथ पै कान देत, धन पर ध्यान देत, दमड़ी पै प्राण देत, नेक ना लजात हैं। दुर्जन को त्रान देत, हाकिम को मान देत, कोरे वाक्य दान देत, मन में सिहात हैं। दुःखित पै तारी देत, मांगते को गारी देत, आये दुतकारी देत, देखि अनखात हैं। देत-देत लालाजू को पल की हू कल नाही, ताहू पै वे जग में, कृपण कहात हैं। स्वार्थ की मर्यादा, अमर्यादा यहाँ एक प्रश्न उठाया जा सकता है कि यों तो प्रत्येक व्यक्ति, यहाँ तक कि साधु भी स्वार्थ के लिए कार्य करता है, परमार्थ नाम की कोई वस्तु इस गज से नापने पर तो मिलनी भी दुर्लभ हो जाएगी। परन्तु जो लोग यह सोचते हैं कि आत्मोन्नति या अपना उद्धार करना भी एक स्वार्थमात्र है, वे भ्रम में हैं। अपना उद्धार करना संसार का उद्धार करने का प्रथम चरण है। जो अपना कल्याण स्वयं नहीं कर सकता, वह संसार का क्या कल्याण कर सकता है ? जो स्वयं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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