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________________ २८६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ बहन और भाई में स्वार्थ के कारण किस प्रकार प्रेम में दरार पड़ जाती है, इसका एक उदाहरण लीजिए एक बड़े सम्पन्न परिवार में बहन और भाई दोनों बड़े प्रेम से रहते थे। दोनों में एक-दूसरे के प्रति अत्यन्त स्नेह था। दोनों ही एक दूसरे को देखे बिना रह नहीं सकते थे । बहन की शादी एक सम्पन्न परिवार में कर दी गई । वह अपनी सुसराल चली गई। इधर पिता-माता का देहान्त हो जाने के बाद भाई की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई । व्यापार में घाटा लग गया। दुर्भाग्य से भाई फटेहाल हो गया, घर में रोटियों के भी लाले पड़ गए। उसकी पत्नी ने कहा- ऐसे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से क्या होगा? आप कहीं अन्यत्र जाकर कोई रोजगार धंधा करें, ताकि हमारा गुजारा चल सके। पत्नी की बात में उसे तथ्य लगा । वह अपने शहर से चल पड़ा। फटे पुराने कपड़े, आँखें अन्दर की ओर धंसी हुई, गाल पिचके, भूख के कारण पेट भी पीठ से लगा हुआ ! चारों ओर दरिद्रता झांक रही थी। फिर भी साहसपूर्वक वह आगे बढ़ा जा रहा था। रास्ते में बहन की सुसराल वाला गाँव भी आ गया। सोचा- "चलो बहन से भी मिलता चलूं, शायद ऐसी हालत में कोई मदद दे दे, या व्यापार-धंधा करा दे।" मगर उसकी यह आशा निराशा में परिणत हो गई । जब भाई बहन के घर के पास आकर दरवाजे पर रुका और उसने अपने आने की अन्दर सूचना दी तो बहन ने ऊपर से उसे देखा । मन में सोचा है तो भाई ही, परन्तु है बिल्कुल फटेहाल और दरिद्र वेश में । ऐसे दीन-हीन को यदि मैं अपना भाई बताऊँगी तो यहाँ मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। अतः ऊपर से ही नौकरों से कहा यह मेरे पीहर में चूल्हा सुलगाने वाला नौकर है । बचपन से ही मुझे बहन कहा करता था। खैर, अब जब यह यहाँ आ ही गया है तो इसे बाहर ही जहाँ पशु बाँधे जाते हैं, वहाँ ठहरा दो। भाई ने बहन के जब ये स्वार्थी उद्गार सुने तो उसका दिल चूर-चूर हो गया पर मन ही मन अपने आप को कोसता रहा । वह खोया-खोया-सा बहन की ओर ताकता ही रहा । आखिर नौकरों ने उसे पशुशाला में ठहरा दिया। कुछ देर बाद ही उसके लिए बहन ने एक ठीकरे में भोजन परोसकर भेजा एक सूखी रोटी, बासी राब, खट्टी छाछ और थोड़ा-सा बासी साग । यह सब देखते ही उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया । उसने नौकर से भोजन ले लिया। नौकर के चले जाने के बाद आँखों से आँसू बहाते हुए उसने वह ठीकरा वहीं गाड़ दिया । और स्वयं बिना कुछ कहे ही भूखा का भूखा वहाँ से चल पड़ा। वह वहाँ से चलकर एक व्यावसायिक केन्द्र में पहुँचा। नगर के व्यापारियों में अपनी अच्छी साख जमा ली। कुछ ही वर्षों में वह मालामाल हो गया । रूठी हुई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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