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________________ यत्नवान मुनि को तजते पाप : १ २३५ बाधा-पीड़ा न हो, इस दृष्टि से यतना से ऊँचे स्थान पर बैठती है, यतनापूर्वक उठती है, यतनापूर्वक सोती है।" प्रत्येक क्रिया के साथ मन रहे यही यतना कहने का तात्पर्य यह है कि जहाँ प्रवृत्ति मन से निकलकर इन्द्रियों में या शारीरिक अवयवों में रह जाती है वहाँ यतना नहीं रहती, भले ही वह धार्मिक क्रिया ही क्यों न हो। __ मुझे एक रोचक दृष्टान्त याद आ रहा है । एक बुढ़िया सामायिक करने के लिए घर के दरवाजे के बीच में ही बैठ गई, इसलिए कि कोई घर में न घुस सके और घर की रखवाली भी हो जाएगी तथा सामायिक भी। पर सामायिक क्रिया ऐसी नहीं होती कि उसके साथ ही अनेक सांसारिक क्रियाएँ भी कर ली जाएँ। पर हुआ ऐसा ही । बुढ़िया की छोटी पुत्रवधू रसोईघर में काम करती-करती उसे खुला छोड़कर ऊपर चली गई। बुढ़िया यह सब देख रही थी, पर बोली कुछ नहीं। बुढ़िया को हलका-सा नींद का झौंका आया कि इतने में एक कुत्ता बाहर से आया और सीधा रसोईघर में घुस गया। जब वह दूध-दही के बर्तन साफ करने लगा, तब बुढ़िया से न रहा गया । मुंह पर पट्टी बँधी हुई थी, फिर भी उसने नमस्कारमंत्र की माला फेरने का नाटक करके गाते-गाते बहू को कहा 'लंबड़पूछो लंकापेटो, घर में धसियो आन जी, णमो अरिहंताणं ।' "लम्बी प्रछ और छोटे पेट वाला कुत्ता घर में घुस गया है, णमो अरिहंताणं" परन्तु जब बहू ने नहीं सुना तो बुढ़िया फिर बोली 'दूध दही ना चाडा फोड़ या, ओरा मांही धसियो जी, णमो सिद्धाणं' फिर भी बहू ने नहीं सुना तो उसने तीसरा पद ललकारा'उज्ज्वलदंता घी-गुड खंता, बहुवर नीचे आओ जी, णमो आयरियाणं ।' इस बार बुढ़िया का तीर निशाने पर लग गया। बहू ने नीचे आकर पूछा'आप क्या फरमा रही हैं ?' तब वह बोली-मेरे तो सामायिक है, वह कुत्ता अन्दर घुस गया है, देखती क्या हो 'ऊखल लारे, मूसल पडियो, ले इणने धमकावोजी, णमो उवज्झायाणं ।' बहू ने कुत्ते को तो बाहर निकाला, लेकिन सासूजी की अजीब सामायिक देख उसे हँसी आ गई । वह पाँचवाँ पद पूरा करती हुई बोली'समाई तो म्हारे पीरे ही करता, आ किरिया नहीं देखी जी नमो लोए सव्वसाहूणं ।' बन्धुओ ! धार्मिक क्रिया में भी मन साथ में नहीं रहता है, तब वह कोरी द्रव्यक्रिया रह जाती है, भावक्रिया नहीं बनती। इस सम्बन्ध में अनुयोगद्वार सूत्र में बहुत ही स्पष्टता के साथ कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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