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________________ २०६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ बहुत मारता, उस समय मेरी दादी जोसेफ पर दया करके अपने घर ले आती, खिलापिलाकर रखती । एक बार जोन ने अपनी पत्नी को इतना पीटा कि वह बेभान होकर मर गई । एक बार जोन स्टोपल ने जोसेफ को खूब मारा, जिससे वह घर छोड़कर भाग गया । उसका पता न लगा । उसके वियोग में जोन बहुत विलाप करता-करता मर गया।" यह सुनते ही वह नाजी अफसर मुझे झाड़ी में ले गया और मुझे धीरे से कहा-"मैं ही जोसेफ स्टोपेल हूँ। तेरी वृद्ध दादी के मेरे पर बहुत उपकार हैं, इसलिए मैं तुम्हें जिन्दा छोड़ देता हूँ। इस झाड़ी के दाहिनी ओर की पंगडण्डी से चला जा।" इस प्रकार एक क्रूरता की प्रतिमूर्ति नाजी अफसर ने भी एक कैदी की दादी के द्वारा किये गये उपकारों को स्मरण करके कृतज्ञता का परिचय दिया, तब क्या समझदार मानव को कृतज्ञता के बदले कृतघ्नता का परिचय देना चाहिए ? हर्गिज नहीं। मिट्टी वनस्पति आदि भी कृतघ्न नहीं बन्धुओ ! और तो और, वनस्पति, पृथ्वी, जल आदि एकेन्द्रिय भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। गुलिश्तां बोस्तां में शेखशादी लिखते हैं-"एक बार एक मिट्टी का ढेला हाथ में लिया तो उसमें से बढ़िया महक उठ रही थी। तब मैंने उस मिट्टी के ढेले से पूछा तुझमें इतनी सुगन्ध कहाँ से आई ?" उसने कहा-“यह सुगन्ध मेरी अपनी नहीं है । मैं गुलाब की क्यारी में रही हूँ, उसी ने मुझे सुगन्धि देकर मेरे पर उपकार किया है।" इसी का नाम है-कृतज्ञता। मिट्टी ने अपनी सुगन्ध न बताकर गुलाब की सुगन्ध बताई । उपकारी के इस प्रकार गुणगान करना, उसके उपकार को भुलाना या छिपाना नहीं, बल्कि समय आने पर उस उपकार का बदला चुकाना, यही कृतज्ञता का लक्षण है। वनस्पति के द्वारा प्रत्युपकार की कथा भी सुनिये ! ये सब पेड़, पौधे, फल, फूल आदि मनुष्यों द्वारा पानी सींचे जाने, खाद दिये जाने, बीज बोये जाने तथा रखवाली किये जाने के कारण अपने पर कृत उपकार का बदला अपनी छाया, फल, फूल आदि देकर चुकाते हैं। देखिये अभिज्ञान शाकुन्तल में नारियल की कृतज्ञता का नमूना प्रथमवयसि पीतं तोयमल्पं स्मरन्तः, शिरसि निहितमारा नारिकेला नराणाम् । उबकममृततुल्यं वद्युराजीवनान्तम्, न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति । बचपन में जब छोटा-सा पौधा था, तब पिये हुए थोड़े-से पानी का स्मरण करते हुए नारियल के पेड़ जीवनभर अपने सिर पर फलों का बोझ धारण किये रहते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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