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________________ १८८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ साहूकार हैं, इस प्रकार से बिना कमाई की एक पाई भी नहीं ले सकते। आप इन थैलियों को संभालिए, मैं जाता हूँ ।" सेठजी जा ही रहे थे कि साहब को एक बात सूझी कि इन्हें जर्मनी के रंग की एजेंसी ही क्यों न दे दी जाए, जिसमें दस हजार से भी ज्यादा कमाई हो जाए । साहब ने तुरंत सेठजी को बुलाया और बिठाकर कहा “सेठजी ! हम आपको ऐसे रुपये नहीं देते, हमने सोचा है कि जर्मनी से अमुक अमुक रंग के इतने ड्रम आने वाले हैं, वह सारा माल हम आपको कमीशन एजेंट बना कर दे देते हैं । अभी बाजार पहले से तेज है । इसलिए इस व्यापार से आप लाभ उठाइए ।" सेठजी के बात जच गई। उन्होंने रंग की एजेंसी ले ली और हावड़ा में 'सेठिया कलर एण्ड केमिकल वर्क्स' खोला । उधर जर्मनी का युद्ध छिड़ गया । रंग के दाम कई गुना बढ़ गए, जिसमें उन्हें लाखों की कमाई हुई । यह था सत्य - व्यवहार से श्रीप्राप्ति के रूप में प्रत्यक्ष फल ! देता है, वह भी सुखी सत्यनिष्ठ के लिए श्रीप्राप्ति का तीसरा मुख्य स्रोत है - सत्य- विचार । जो मनुष्य सत्य विचारपूर्वक प्रवृत्ति करता है, वह स्वयं सुख-शान्ति और सन्तोष धन को प्राप्त करता है, और जिसको वह सत्य विचार या सत्परामर्श और विवेकी हो जाता है । सत्य विचार एक प्रकाश है, जिसमें मनुष्य कर्तव्याकर्तव्य, हिताहित, धर्माधर्म एवं हेय - उपादेय का भलीभाँति विवेक कर सकता है । सत्यनिष्ठ व्यक्ति किसी के द्वारा पूछे जाने पर सत्य विचार ही प्रगट करता है । पाण्डवों और कौरवों में युद्ध चल रहा था । दुर्योधन पाण्डवों के द्वारा युद्ध में किये जाने वाले प्रहार सहते-सहते थक गया था । किसी ने उससे कहा कि अगर तुम्हें अजेय बनना हो तो सत्यवादी धर्मराज युधिष्ठिर के पास जाओ, वे तुम्हें सच्ची सलाह देंगे, चाहे वे तुम्हारे विरोधी पक्ष के हैं, परन्तु इतने विश्वसनीय हैं कि वे तुम्हें सत्य परामर्श देंगे ।" दुर्योधन सीधा युधिष्ठिर के पास पहुँचा और नमस्कार करके पूछा - "भाई साहब ! मैं आपसे एक विषय में सत्परामर्श के लिए आया हूँ । आशा है, आप मुझे सच्ची सलाह देंगे ।" युधिष्ठिर ने कहा - "कहो, दुर्योधन ! क्या पूछना है ?" दुर्योधन बोला - " मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ कि क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे मैं अजेय हो जाऊँ । मेरे शरीर पर शस्त्र का प्रहार असर न कर सके ।" युधिष्ठिर - "इसका उपाय है और वह उपाय तुम्हारे घर में ही है ।" दुर्योधन- "कौन-सा उपाय है ? जरा बताइए तो ।" युधिष्ठिर - "उपाय यह है कि अगर तुम अपनी माता गांधारी के सामने नंगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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