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सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २
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सत्याचरण से प्रभावित होकर यह राज्यश्री तुम्हें सौंपता हूँ।" यों कहकर राजा ने उसे राजगद्दी पर बिठाकर स्वयं मुनिदीक्षा ले ली।
___ सचमुच, सत्यनिष्ठ के सत्याचरण से देवता भी नमन करके उसे भौतिक श्री से समृद्ध कर देते हैं।
सत्यनिष्ठ को श्री प्राप्ति के चार मुख्य स्रोत वास्तव में सत्यनिष्ठ को श्रीप्राप्ति के चार मुख्य स्रोत हैं, जिनसे वह समग्र प्रकार की 'श्री' से समृद्ध होता है । उसकी पुण्यश्री में श्रीवृद्धि होती है, यश:श्री में भी तथा अन्य सभी प्रकार की श्री में भी । वे चार स्रोत ये हैं
१–सत्यवाणी २-सत्य व्यवहार ३-सत्य विचार ४-सत्य आचरण
सत्यनिष्ठ की वाणी में जो माधुर्य होता है, उसका प्रभाव जादू-सा पड़ता है। यद्यपि सत्यनिष्ठ व्यक्ति कम बोलते हैं, किन्तु वाक्शक्ति के द्वारा जो लम्बे-चौड़े भाषण झाड़कर जनता को क्षणिक उत्तेजित एवं प्रभावित कर देते हैं, उनकी अपेक्षा मितभाषी सत्यनिष्ठ की वाणी का प्रभाव स्थायी और अमिट होता है, क्योंकि उसके पीछे आचरण की शक्ति होती है । सत्यनिष्ठ की वाणी और उसका थोड़ी-सी देर का सम्पर्क भी जनता भूलती नहीं। सत्यनिष्ठ व्यक्ति की वाणी के विषय में सामवेद ११५।१६।२० में कहा है--
'ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियम' 'सत्यभाषी की जिह्वा से अतिमोहक मधुरस झरता है।'
सत्यनिष्ठ की वाणी में इतना तेज आ जाता है, कि वह जो कुछ कह देता है, वह होकर रहता है। उसकी वाणी अमोघ होती है । उसे वचनसिद्धि प्राप्त हो जाती है। सुनते हैं-प्राचीनकाल में ऋषि लोग किसी को आशीर्वाद दे देते थे, या किसी को शाप दे देते थे, वह वैसा होकर ही रहता था।
जैन शास्त्रों में महाव्रतधारी मुनियों के लिए किसी को श्राप या कठोर अपशब्द कहना मना है । जो सारे संसार के मित्र हैं, बन्धु हैं, वत्सल हैं या आत्मीय हैं, वे किसी को कटु, कठोर, घातक या हृदयविदारक वचन, चाहे वह तथ्यभूत हो, नहीं कह सकते ।
असत्य स्थान पर दृष्टि न डालने और असत्य भाषण न करने से सत्यनिष्ठ की वाणी और नेकों में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो सकती है कि वाणी से जो कह दे, वही हो जाए, एवं नेत्रों से जिसे देख ले उसका शरीर वज्रमय सुदृढ़ हो जाए या भस्म हो जाए । यही कारण है कि सत्यनिष्ठ की वाणी का सर्वत्र अचूक प्रभाव पड़ता है ।
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