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________________ सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २ १८१ "जो सत्यव्रतरूपी महाधन से युक्त हैं, वे कभी असत्य भाषण नहीं करते। अतः भूत, प्रेत, सांप, सिंह, व्याघ्र आदि उनको कुछ भी हानि नहीं पहुँचा सकते ।" वास्तव में सत्यवादी को महान भौतिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं, वह उमका स्वयं प्रयोग शायद ही करता है। सिद्धियाँ और लब्धियाँ उसकी चेरी बनी फिरती हैं। प्रश्नव्याकरण और आवश्यकसूत्र में सत्यनिष्ठा से प्राप्त होने वाली विविध उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। आवश्यकसूत्र में बतलाया गया है कि सत्य के प्रभाव से सत्यवादी समुद्र या जल की बाढ़ में डूब नहीं सकता, जल ही उसके लिए स्वतः तैरने योग्य जाता है। दिशा भूल जाने पर यथास्थान ले जाने वाला कोई न कोई मार्गदर्शक मिल जाता है। खौलता हुआ तेल, गर्म लोहा, शीशा आदि हाथ में लेने पर आग उसका हाथ जलाती नहीं । सत्यधारी को ऊपर से गिराने पर भी उसकी मृत्यु नहीं होती, शस्त्रधारी शत्रुओं से घिर जाने पर भी सत्यधारी सही सलामत बच जाता है। वध, बन्धन, अभियोग, वैर आदि घोर उपद्रवों के समय वह बाल-बाल बच जाता है। सत्यपालकों में ऐसी दिव्यशक्ति होती है कि स्वयं देवता भी उसकी सेवा में सहायता के लिए चले आते हैं । सत्यार्थी स्वयं भी देव के समान पूजनीय बन जाता है। कान्तिपुरी नगरी के राजा वैरिदमन का छोटा पुत्र राजकुमार मकरध्वज बहुत ही विनीत, उदार, गम्भीर, सरल और पुण्यशाली था। एक बार नगरी के बाहर वन में वसन्तोत्सव था। वनपालक ने वसन्तोत्सव की अनुपम छटा निहारने के लिए राजा से प्रार्थना की। किन्तु बुढ़ापा आया देख राजा स्वयं न गए, उन्होंने सभी राजकुमारों को वसन्तोत्सव देखने भेजा। वहाँ वसन्तोत्सव देखते-देखते अन्य राजकुमारों में से किसी ने लाख, किसी ने दो लाख, किसी ने तीन लाख और किसी ने चार लाख स्वर्णमुद्राएँ याचकों को दान दीं, परन्तु अकेले मकरध्वज राजकुमार ने एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ दान दी। भंडारी ने राजा से जाकर राजकुमार मकरध्वज की शिकायत की। इस पर राजा ने मकरध्वज से कहा-"पुत्र ! सुना है, तुम एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ दान दे आए हो । परन्तु मान लो, अकस्मात् किसी शत्रु राजा से युद्ध करना पड़े, या दुष्काल आ पड़े उस समय भंडार खाली हो तो कैसे काम चलेगा? यदि तुम अकेले ही एक दिन में एक करोड़ सोनैया खर्च कर आओ तो थोड़े ही दिनों में सारा भण्डार खाली हो जाएगा। भंडार में प्रतिवर्ष आवश्यक खर्च के बाद सिर्फ तीन करोड़ सोनये बचते हैं । अतः जरा विचार करके खर्च करना चाहिए।" यह सुनकर मकरध्वज ने विनयपूर्वक कहा-"पिताजी ! जिसके पुण्य प्रबल होते हैं, उस व्यक्ति के दान देते रहने पर भी भंडार में श्रीवृद्धि होती रहती है, भंडार उसी के खाली होते हैं, जो भाग्यहीन हो।" इस पर राजा ने कहा- "अगर ऐसी बात है तो तुम जो एक करोड़ सोनये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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