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________________ १६० आनन्द प्रवचन : भाग ६ सत्यता की कसौटी करते हैं और कसौटी में खरा उतरने पर वे उस सत्यनिष्ठ की पूजा-प्रतिष्ठा करते हैं, उसे सब प्रकार से सहायता देते हैं, उस पर आई हुई विपत्तियों को दूर करते हैं। यहाँ तक कि सारी प्रकृति उस सत्यवादी के अनुकूल हो जाती है । सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे, समुद्र, नदी, पर्वत, वन, वनस्पति, जल, पवन, पृथ्वी, अग्नि, आदि सभी सत्यवादी के अनुकूल बन जाते हैं। इस प्रकार उस सत्यवादी का जीवन सबसे परिचित हो जाता है। आम जनता भी उसे परख लेती है, उस पर विश्वास कर लेती है। और भी अनेक तरीके हैं—सत्यवादी को पहचानने के। जिसके जीवन में सत्य के प्रति पूर्ण निष्ठा होगी, उसका प्रत्येक व्यवहार सत्य से युक्य होगा। उसकी वाणी सत्य से सनी होगी, उसके विचार अनाग्रहयुक्त, सत्याग्रहपूर्ण, अनेकान्त से ओतप्रोत होंगे। वह अपने ही सत्य को सत्य नहीं कहेगा, बल्कि उसकी दृष्टि में यही होगा कि विश्व में जहाँ भी सत्य है, वह सब मेरा है। सत्य निष्ठ व्यक्ति बहुत ही जागरूक रहता है । वह किसी भी बात को बिना तोले मुंह से नहीं निकालता और जो कुछ भी उसके मुंह से निकल जाता है, वह उस पर अन्त तक टिका रहता है। उसने जैसा देखा है, जैसा सुना है, जैसा अनुमान किया है, दूसरों को समझाने के लिए वह उसी प्रकार कहेगा, अपनी ओर से उसमें जरा भी नहीं मिलाएगा। वह अपने किसी भी स्वार्थ के लिए लोभ या भयवश, आवेश और द्वेषवण कभी झूठ नहीं बोलेगा। वह देखी हुई और सुनी हुई बात से ही सहसा निर्णय नहीं करेगा। सत्यवादी का जीवन खुली हुई पुस्तक के समान होगा, कोई भी वस्तु उसके जीवन में गुप्त या प्रच्छन्न नहीं होगी, यहाँ तक कि वह अपनी समझदारी से पहले भूतकाल में की गई भूलों और दोषों को भी खुल्लमखुल्ला प्रगट कर देगा; क्योंकि सत्य तो कहीं भी छिप नहीं सकता, वह एक दिन उजागर होकर रहता है । पाश्चात्य विचारक विलसन के शब्दों में देखिये "Truth is like a lighted lamp, in that it cannot be hidden away in the darkness, because it carries its own light." "सत्य एक प्रकाशित लैंप की तरह है, जैसे लैंप में प्रकाश छिपाया नहीं जा सकता, क्योंकि वह अपने अन्दर अपने प्रकाश को लिए हुए है, वैसे ही सत्य का प्रकाश छिपाया नहीं जा सकता, क्योंकि वह अपने में स्वतः ही प्रकाश को लिए हुए है।" . मुस्लिम सरदार हजरत उमर मस्जिद में बैठे अनेक मामलों का निपटारा कर रहे थे । वहाँ अनेक लोग उपस्थित थे । इतने में दो व्यक्ति एक सुन्दर युवक को पकड़कर हजरत उमर के पास लाए और कहा-"हजूर ! इस जुल्मी ने हमारे पिता की हत्या की है, इसे सजा फरमाई जाए।" हजरत ने युवक पर निगाहें डालकर उससे पूछा-"क्या यह बात सत्य है ?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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