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________________ १४२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ चित्त में एकाग्रता का स्वभाव उत्पन्न करना और उसे व्यग्रता से, बिखरने से बचाना आवश्यक है। वैज्ञानिक शोधकार्यों में इतने दत्तचित्त एवं एकाग्र होकर कार्य करते हैं कि उन्हें लैबोरेटरी से बाहर की दुनिया का भी ज्ञान नहीं होता। एक-एक सिद्धान्त के रहस्यों की वे छानबीन करते चले जाते हैं, और कोई न कोई नई चीज ढूंढकर निकाल लाते हैं। एक ही बात जब तक मस्तिष्क में रहती है तब तक उसी के अनेक साधनों के विषय में सूझबूझ एवं स्फुरणा होती रहती है। उनमें से उपयोगी बातों की पकड़ चित्त की एकाग्रता से ही होती है। जैनशास्त्रों में कछुए का दृष्टान्त देकर चित्त की एकाग्रता साधने की प्रेरणा दी गई है। जैसे कछआ विपत्ति की आशंका होते ही अपने सारे अंगों को चारों ओर से समेट लेता है, सिकोड़ लेता है। इससे उसके जीवन में उपस्थित होने वाले खतरों से वह सर्वथा बच जाता है, इसी प्रकार साधक भी चित्त को चारों ओर से एकाग्र करके काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों के खतरे से बच जाता है। विद्यार्थी के पाँच लक्षणों में एक लक्षण है-'बकध्यानम्' बगुला शरीर और मन की सारी क्रियाओं को साधकर एक प्रकार से निश्चेष्ट हो जाता है । और इसी धोखे से मछली बाहर आती है, वह खट से उसे पकड़ लेता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सच्ची सफलता पाने के लिए साधक को भी बकध्यानी की तरह एकाग्रचित्त होना आवश्यक है। एक ही अभीष्ट लक्ष्य की दिशा में अपनी सारी चित्तवृत्तियाँ समारोपित रखने से महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी तो होती ही है, साथ ही भूलें और त्रुटियाँ भी उसकी समझ में आ जाती हैं, जिससे कार्य में गड़बड़ी होने की आशंका नहीं रहती है। इस अनुभव के आधार पर ही कठिनाइयों से बच जाना सम्भव होता है। प्रतिदिन नया काम बदलने से किसी तरह का ज्ञान प्राप्त नहीं होता और न ही अनुभव विकसित होते हैं। ___ आकाश में उड़ने वाले हवाई जहाज के पायलट को कुतुबनुमा के सहारे रास्ता तय करना और चलना पड़ता है । वहाँ सड़कों के से निशान नहीं होते, जैसे सड़कों पर मोटरें दोड़ती हैं, वैसे वहाँ जहाज नहीं दौड़ सकते । पायलट को बादलों से बचाव तथा हवा के कटाव आदि में पंखों को भी ऊपर-नीचे करना पड़ता हैं । पायलट यदि कोई उपन्यास पढ़ना चाहे तो विमान के गिर जाने का ही खतरा पैदा हो सकता है, इसलिए उसका सारा ध्यान एकाग्रतापूर्वक विमान को ठीक तरह से चलाने में लगा रहता है। लक्ष्य में एकाग्र हुए बिना जहाज के पायलट को कोस भर की यात्रा करना भी दुःसाध्य हो जाएगा। भारी भरकम मशीनरी पर नियन्त्रण करने की क्षमता इन्जीनियर में क्यों होती है ? उसमें यह विशेषता होती है कि कार्य करने के समय उनका सारा ध्यान मशीन के कल-पुजों के साथ बँध जाता है। एक-एक हिस्से पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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