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________________ संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : १ १३३ थी कि वह घर में बार-बार झाड़ लगाती थी। यदि कोई बच्चा या बड़ा तनिक-सी गन्दगी कर देता तो वह बुरी तरह उखड़ पड़ती थी। मैंने एक झक्की को देखा है, जो टट्टी जाने के बाद बार-बार मिट्टी से अनेक बार अपने हाथ धोता था। बीसियों बार मिट्टी से हाथ धोने के बाद भी वह साबुन से हाथ धोता था। उसे यही भ्रमपूर्ण और सन्देहात्मक कल्पना रहती थी कि टट्टी अब भी हाथ में लगी रह गई है। एक सज्जन अपने आपको बड़ा भक्त कहते और अछूतों से घृणा करते थे। यदि कोई शूद्र घर में आ जाता तो वे फर्श को कई बार धुलवाते थे। बाहर से खरीदे हुए पदार्थ को भी वे धोते थे और किसी से छू जाने पर वे कई बार नहाते थे। ___सम्भिन्नचित्त व टूटे हुए चित्त कुण्ठाग्रस्त भी होते हैं। कुण्ठा चित्त में किसी भाव को दबाने से उत्पन्न होती है। बचपन की किसी कटु अनुभूति के कारण ये दमित या दलित (कुण्ठित) भाव दुःख और व्याधि के कारण बनते हैं और मनुष्य को परेशान किये रहते हैं। ऐसे कुण्ठाग्रस्त चित्त वाला व्यक्ति किसी काम में सफलता, शोभा या सुखशान्ति नहीं पाता। क्रोधी, चिड़चिड़ी, बात-बात में झगड़ा करने वाली कर्कशा नारी के बिगड़े हुए स्वभाव का कारण कुण्ठाग्रस्त चित्त ही है, जो प्रायः बचपन में उस पर किये गये नाना प्रकार के दमन के कारण बनता है। कई नारियाँ या पुरुष छोटे बच्चों से बहुत घृणा करते हैं, उसका कारण यही कुण्ठाग्रस्तचित्त है, उनमें मातृत्व या पितृत्व के सहजभाव पनप नहीं पाये हैं, कुण्ठित हो गए हैं। एक लड़का था, जो छोटे-छोटे जानवरों को पीटने और सताने में आनन्द मानता था। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वास्तव में वह लड़का अपने में कुण्ठित (छिपे हुए) पौरुष और शासन करने के भाव को गलत तरीके से व्यक्त कर रहा था। सम्भव है, ऐसा लड़का आगे चलकर दुष्ट और हत्यारे के रूप में पनपे । एक युवक था। उसका विवाह उसकी मनोनीत प्रेमिका से होना तय हो चुका था। इससे वह जोश में आ गया था। परन्तु अकस्मात उसका वह सम्बन्ध टूट गया। तब उसे निराशा का भारी धक्का लगा। वह टूटे हुए चित्त का युवक विद्रोही बन गया। विध्वंसात्मक प्रवृत्ति में पड़कर समाज से प्रतिशोध लेने पर उतारू हो गया। इस प्रकार के कुण्ठाग्रस्त टूटे हुए चित्त वाले व्यक्तियों में क्रोध का ज्वालामुखी, घृणा का तुफान या आदेश की सुलगती आग भड़क उठती है, जो उसके चित्त के अनुकूल, प्रिय, सम्बन्धित कार्य में लगने से शान्त हो सकती है। __ एक उत्पातकारी विद्यार्थी के विषय में सुना था। वह कालेज में जाते हुए बाग के पेड़ और फल तोड़ता, मालियों को परेशान करता और विद्यार्थियों को पीट देता था । सभी उससे तंग थे। पढ़ने में उसका मन कतई नहीं लगता था। एक मनो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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