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________________ संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : १ १२६ जिस कार्य में विजयश्री पाने के लिए उत्सुक होते हैं, उसमें जब पूरी तरह से सारी शक्ति लगाकर सक्रिय नहीं होते और न ही उपयुक्त साधन जुटाते हैं, तब उन्हें विजयश्री कैसे मिल सकती है ? जिसके चित्त की स्थिति डांवाडोल रहती है, वह कभी एक कार्य, फिर दूसरा और फिर तीसरा, इस तरह से इधर-उधर चक्कर काटता रहता है और जिस कार्य को करने चले थे, वह अधूरा ही रह जाता है। अमेरिका के प्रसिद्ध धनवान 'राथ्स चाइल्ड' ने किसी युवक को सलाह देते हुए कहा था--"तुम्हें जो भी व्यवसाय पसंद हो, उसी में लग जाओ, इस प्रकार तुम्हें अधिकाधिक लक्ष्मी, सफलता और कीर्ति मिल सकेगी। पर यदि तुम एक साथ ही होटल वाले, अर्थशास्त्री, व्यापारी, कारीगर आदि सब तरह के काम करने की कोशिश करोगे तो अखबारों में तुम्हारा नाम दिवालिया होने वालों के स्तम्भ में निकलने में देर न लगेगी।" __इस प्रकार जो व्यक्ति संभिन्नचित्त होकर अपने समय और श्रम को इधरउधर के अनेक कामों में व्यर्थ ही खोता रहता है, उसे सफलता और श्री की आशा कदापि नहीं रखनी चाहिए। लन्दन में एक व्यक्ति ने अपने निवास स्थान पर एक साइनबोर्ड लगा रखा था, उस पर लिखा था- “यहाँ सामान बदला जाता है, खबर ले जाई जाती है, फर्श धोये जाते हैं और किसी भी विषय पर कविता लिखी जाती है।" कहने की आवश्यकता नहीं कि इनमें से किसी भी काम को वह मनुष्य ठीक तरह से नहीं जानता था, न कर सकता था। फलतः इन असम्बद्ध और बेमेल कामों में उसे जीवनभर जरा भी सफलता नहीं मिली और न ही कुछ धन मिला । क्योंकि लोग ऐसे व्यक्ति को सनकी, विक्षिप्त-चित्त और झक्की समझते थे। ऐसे अनाड़ी को काम देना कोई भी समझदार पसंद नहीं करता था। भला, ऐसे हरफनमौला को कोई भी समझदार आदमी किसी जिम्मेदारी का काम कैसे सौंप सकता है, जो एक-एक घंटे में अपने विचार बदलता हो। पागल आदमी का भी चित्त विक्षिप्त रहता है, वह कभी कुछ बोलता है, कभी कुछ । उसका पूर्वापर कथन असम्बद्ध-सा मालूम देता है । ऐसे उखड़े हुए चित्त वाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता । धार्मिक क्षेत्र में भी वह अपने लक्ष्य की ओर गति नहीं कर सकता, वह आज एक साधना को स्वीकार करेगा, कल दूसरी साधना पकड़ लेगा। उससे न जप होगा और न तप, न वह किसी धर्मक्रिया को ठीक से कर सकेगा, न ही किसी विधि को पूर्ण कर सकेगा । आर्थिक क्षेत्र में तो वह सर्वथा असफल रहेगा। व्यावहारिक क्षेत्र में भी वह किसी भी कार्य को पूरी जिम्मेदारी के साथ, लगन के साथ नहीं कर सकेगा। युद्ध में लड़ने का काम सैनिक करते हैं, किन्तु विजय का श्रेय कमाण्डर को मिलता है। क्या कभी आपने सोचा है, ऐसा क्यों होता है ? समझदार लोग जानते हैं कि युद्ध की सारी योजना एवं व्यूहरचना की योजना सेनापति ही बनाता है। वही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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