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________________ १२६ . आनन्द प्रवचन : भाग ६ इससे ध्वनित होता है कि जो आलस्यशिरोमणि है, प्रमादशंकर है, दिन-रात पड़ा रहता है, पेटू है, कोई भी अच्छा कार्य या जिम्मेदारी का नैतिक कार्य करने को जी नहीं चाहता, कहने पर काटने को दौड़ता है, ऐसे व्यक्ति के पास लक्ष्मी आएगी और टिकेगी भी क्यों ? उसकी श्रीहीनता तो उसके व्यवहार एवं रहन-सहन से ही स्पष्ट है । उसके जीवन में शोभा या तेजस्विता आएगी ही कहाँ से, जो बात-बात में शंकाशील है, अत्यन्त सयानापन करता है, या जो आलोचना से कतराता है ? ___ वास्तव में जिस व्यक्ति को लक्ष्मी मिलती है, वह पुण्यशाली होता है, परन्तु वही व्यक्ति पुण्यशाली है, जो नैतिक एवं पवित्र दिशा में अपनी प्रवृत्ति चलाता है। संतों का कथन है-यह नीति-धर्म से प्राप्त लक्ष्मी भोगविलास के लिए, ऐशआराम के लिए या दुर्व्यसनों में खर्च करने के लिए नहीं है । जो व्यक्ति प्राप्त लक्ष्मी का दुरुपयोग करता है, उसके पास लक्ष्मी टिकती नहीं, कदाचित् कुछ दिन टिकती भी है तो वह अभिशाप रूप बन जाती है, सुखशान्ति के बदले वह दुःखदर्द बढ़ाती है । दान, पुण्य या परोपकार के कार्यों में निष्कांक्ष रूप से लक्ष्मी का उपयोग होने पर ही वह स्थिर रहती है। जो लक्ष्मी दान, पुण्य आदि सत्कार्यों में व्यय की जाती है, वही प्रशंसनीय और वृद्धिंगत होती है । सदाचार से ही लक्ष्मी टिकती है। वैदिक पुराण में वर्णन है कि लक्ष्मी ने इन्द्र के पूछने पर कहा था- "देवराज ! जब किसी राष्ट्र में प्रजा सदाचार खो देती है, तो वहाँ की भूमि, अन्न, जल, अग्नि कोई भी मुझे स्थिर नहीं रख सकते । मैं लोकश्री हूँ। मुझे लोकसिंहासन चाहिए, व्यक्ति के सदाचारी मानस में ही मैं अचल निवास करती हूँ।" _अब आइए महर्षि गौतम के जीवनसूत्र पर । महर्षि ने एक सूत्र में सभी नीतिकारों, धर्मशास्त्रों के मंतव्य का निचोड़ बता दिया 'संभिन्नचित्तं भयए अलच्छी' 'जो संभिन्नचित्त होता है, उसके पास लक्ष्मी नहीं रहती, अलक्ष्मी-दरिद्रता का ही वास रहता है।' संभिन्नचित्त में सभी अयोग्यताओं का समावेश ___संभिन्नचित्त व्यक्ति का विशेषण है । संभिन्नचित्त में पहले बताई हुई सभी अयोग्यताएँ-लक्ष्मी प्राप्त न करने या उसके स्थिर न रहने की बातें-समाविष्ट हो जाती हैं। क्योंकि जिसका चित्त संभिन्न होता है, उसका संशयशील, अकर्मण्य, अविश्वासी, आलसी, चित्त में नाना कल्पनाएँ करके हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाला विक्षिप्तचित्त-सा, गंदा, अव्यवस्थित एवं अनिश्चयी व्यक्ति होना स्वाभाविक है । इसलिए गौतम ऋषि ने सौ बातों की एक बात कह दी-संभिन्नचित्त व्यक्ति के पास लक्ष्मी नहीं फटकती, उसे सदा दरिद्रता ही घेरे रहती है। संभिन्नचित्त : विभिन्न अर्थों में । आइए अब 'संभिन्नचित्त' शब्द पर विचार कर लें । संभिन्नचित्त शब्द बहुत ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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