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आनन्द प्रवचन : भाग ८
जो तोको कांटा बुवै, ताहि बोब तू फूल ।
तोहि फूल को फूल हैं, वाको है तिरसूल ॥ आध्यात्मिक व्यक्ति किसी के दुर्वचनों को सुनकर क्रोध नहीं करता, न किसी प्रकार का अधिकार पाकर दूसरों की जरा-सी भूल पर कहर बरसाता है, बल्कि वह दूसरे व्यक्ति को, आध्यात्मिक रोग ग्रस्त एवं दयनीय समझ कर उस पर क्षमाभाव प्रदर्शित करता है।
संत तुकाराम को पंढरपुर तीर्थ के भक्तों ने गन्ने का एक भारा दे दिया। रास्ते में जिन्होंने माँगा, उन्हें वे एक-एक गन्ना देते गये। अन्त में सिर्फ एक गन्ना रहा, उसे लेकर वे घर पहुँचे। उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत भला-बुरा कहा कि इस एक गन्ने से क्या होगा ? घर में ४ प्राणी हैं। फिर क्रुद्ध होकर उसने तुकारामजी की पीठ पर वही एक गन्ना दे मारा। सहिष्णु तुकारामजी खिलखिला कर हँस पड़े और कहने लगे-तू कितनी भली औरत है कि चाकू से हमें ४ टुकड़े करने पड़ते, तूने सहज ही में चार टुकड़े कर दिये ।"
क्षमावान् सहिष्णु में कितनी आत्मशक्ति बढ़ जाती है, इसकी महिमा में पद्मपुराण के दो श्लोक साक्षी हैं
यस्य शान्तिमयंशस्त्रं, क्रोधाग्नेरुपशामनम् । नित्यमेव . जयस्तस्य शत्रूणामुदयः कुतः॥ स शूरः स सात्त्विको विद्वान् स तपस्वी जितेन्द्रियः ।
येन क्षान्त्यादिखड्गेन क्रोधशत्रुनिपातितः ॥"
—जिसके पास क्षमारूपी शस्त्र है, जो क्रोधाग्नि को शान्त कर देता है, उसकी सदैव जय है, उसके शत्रुओं का उदय ही कैसे हो सकता है ? जिसने क्षान्ति आदि की तलवार से क्रोध रूपी शत्रु को मार गिराया है, वही शूरवीर है, वही सात्त्विक विद्वान् है, वही तपस्वी और जितेन्द्रिय है। कष्टसहिष्णता : क्षान्ति का महत्वपूर्ण अंग
जो व्यक्ति कष्ट, अपमान, पीड़ा, हानि एवं वियोग को हंसते-हंसते सह लेता है, वही सच्चा सहनशील है, वही परिषह विजयी है, विश्व में जितने भी सहिष्णु मानव हुए हैं. उन्होंने ही दुनिया के हृदय पर विजय प्राप्त की है। उसमें इतना आत्मबल बढ़ जाता है कि जो कुछ कहता है, लोग उसे शिरोधार्य कर लेते हैं । एक कवि ने सहिष्णु व्यक्ति का मानस चित्रण किया है
मैंने हार नहीं मानी है ! अब भी तो मैं बाधाओं से विपदाओं से खेल रहा हूँ। जाने में या अनजाने में कितने सुख-दुःख झेल रहा हूँ।
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