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________________ ५२ आनन्द प्रवचन : भाग ८ त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभ स्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ॥ "आत्मा का नाश करने वाले काम, क्रोध और लोभ ये तीन नरक के द्वार हैं, इसलिए इन तीनों का त्याग करना चाहिए।" स्पर्श-मूढ़ता पांचों इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति भी कामवर्द्धक है, इसलिए काम-भोग शब्द में पांचों इन्द्रियों का विषय भी आ जाता है। इन पांचों में स्पर्शेन्द्रियजन्य काम सबसे प्रबल है । स्पर्शेन्द्रियजन्य काम का सीधा अर्थ है-स्त्री पुरुष का परस्पर कामवासना की दृष्टि से संस्पर्श होना । ऐसा स्त्री स्पर्श इतना बलवान होता है कि बिजली के करेंट की तरह मनुष्य को कामविह्वल बना देता है । _ विश्वपुर के धरणेन्द्र राजा का पुत्र महेन्द्रदत्त के श्रेष्ठीपुत्र मदन के साथ गाढ़ी दोस्ती थी। एक दिन राजकुमार महेन्द्रदत्त श्रेष्ठी पुत्र के यहाँ आया। उस समय राजकुमार को अपने पति का मित्र जानकर अत्यन्त रूपवती एवं सुकुमार मदन की पत्नी चन्द्रवदना ने उसके हाथ में पान का बीड़ा दिया। उस सुन्दरी के हाथ का स्पर्श होते ही राजकुमार अत्यन्त काम-विह्वल हो उठा। वह मन ही मन सोचने लगा-ऐसी सुन्दरी स्त्री का जब तक संग न कर लूं, वहाँ तक मेरा जीना निष्फल है । अतः राजकुमार उस चन्द्रवदना से हंसी मजाक करने लगा। कभी-कभी कामकुचेष्टा करने लगा । धीरे-धीरे चन्द्रवदना को अपने वश में करके महेन्द्रदत्त राजकुमार उसके साथ अनाचार करने लगा। अब तो राजकुमार प्रतिदिन एक बार तो उसके पास अचूक रूप से जाता और उसके साथ सहवास करके आता। इसी बीच जिस दिन राजा धरणेन्द्र राजकुमार महेन्द्र को राजगद्दी पर बिठाना चाहता था, उससे पहले दिन महेन्द्र ने चन्द्रवदना को बुला लाने के लिए रात्रि को कुछ विश्वस्त पुरुष गुप्तरूप से भेजे । चन्द्रवदना ने सुना तो कहलाया-"जहाँ तक मेरा पति मदन जीवित है, वहाँ तक मैं आपके पास निःशंकरूप से नहीं आ सकती।” महेन्द्र ने उसके कथन का फलितार्थ यह निकाला कि "मदन को मारने पर ही मैं आ सकती हूँ।" अतः महेन्द्र ने मदन की हत्या करने के लिए वे ही पुरुष भेजे। वे मदन के यहाँ जाकर उसे मारने लगे। कोतवाल को किसी तरह इस बात का पता लग गया। अतः उन पुरुषों को रस्सी से बांधकर गिरफ्तार करके कोतवाल ने राजा के सामने उन्हें पेश किया । राजा ने उन लोगों से पूछा- “सच-सच बताओ तुम लोग मदन को क्यों मार रहे थे ?" उन्होंने कहा-'हम तो राजकुमार के कहने से ऐसा कर रहे थे।" सारी बात का भंडाफोड़ हुआ । राजा ने उन सब पुरुषों के सहित राजकुमार महेन्द्र को अपने नगर से निकाल दिया। कामासक्त महेन्द्र चन्द्रवदना को लेकर नगर से चला गया । तत्पश्चात् राजा ने अपने छोटे पुत्र को राज्य सौंपकर स्वयं संसार से विरक्त हो गए और दीक्षा लेकर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष पहुँचे । श्रेष्ठीपुत्र मदन भी त्रियाचरित्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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