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होते मूढ नर कामपरायण ४५
काम ! तेरे कितने रूप? यों तो काम के मुख्यतया दो प्रकार बताए गये हैं - इच्छाकाम और मदनकाम । इच्छाकाम के मुख्य पाँच भेद हैं, जो काम-भोग दोनों के अन्तर्गत हैं। अब रहा मदनकाम; वह असम्प्राप्त और सम्प्राप्त के भेद से दो प्रकार का बताया गया है। चूंकि मदनकाम स्त्री-पुरुष के परस्पर संयोग से लेकर मैथुनक्रिया तक की प्रक्रिया को कहा जाता है इसलिए परोक्ष में स्त्री प्रसंग से पहले की जितनी वैचारिक प्रक्रियाएँ हैं, उन सबको असम्प्राप्त काम कहते हैं और प्रत्यक्ष में स्त्री-प्रसंग से पहले की दृष्टि सम्पात आदि प्रक्रियाएँ सम्प्राप्त काम कहलाते हैं । असम्प्राप्त काम की दस दशाएँ बताई हैं-(१) अर्थ-(किसी स्त्री के विषय में सुनकर उसको पाने की अभिलाषा करना), (२) चिन्ता-(उसके प्रति अनुरागपूर्वक चिन्तन करना), (३) श्रद्धा(उसके प्रसंग की अभिलाषा करना), (४) संस्मरण-(मनोनीत स्त्री के चित्र आदि को देखकर याद करना, (५) विक्लवता-(स्त्री के विरह दुःख से उदास हो जाना), (६) लज्जानाश-(गुरुजनों के समक्ष उसके गुणगान करना), (७) प्रमाद-(उसके लिए आरम्भादि में प्रवृत्त होना), (८) उन्माद-(विक्षिप्त होकर बड़बड़ाना), (६) तद्भाव-(स्तम्भादि का स्त्रीबुद्धि से आलिंगन आदि चेष्टा करना), (१०) मरण-(निश्चेष्ट हो जाना)।
सम्प्राप्त काम की १४ दशाएँ बताई गई हैं-(१) दृष्टि सम्पात-(स्त्री के कुच आदि अंगों को देखना), (२) दृष्टि सेवा-(आँख से आँख मिलाना), (३) सम्भाषण-(काम दृष्टि से वार्तालाप करना), (४) हसित-(५) ललित-(चौपड़ पासे आदि से खेलना), (६) उपगूढ़-(गाढ़ आलिंगन करना), (७) दन्तनिपात(दन्त छेदन करना), (८) नखनिपात-(नख से काटना), (९) चुम्बन-(१०) आलिंगन, (११) आदान-(कुच आदि का ग्रहण), (१२) करण—(स्त्री प्रसंग की तैयारी करना), (१३) आसेवन–(मैथुन क्रिया) और (१४) अनंग क्रीड़ा-(कामांगों के अतिरिक्त अंगों से काम सेवन करना)।
इस प्रकार काम की विविध दशाओं का वर्णन कामसूत्र आदि ग्रन्थों में मिलता है।
भगवती आराधना में काम के १० वेगों का वर्णन है। वे इस प्रकार हैं(१) काम के उद्दीप्त होने पर पहले चिन्ता होती है, (२) तत्पश्चात् स्त्री को देखने की इच्छा, (३) दीर्घ निःश्वास, (४) ज्वर, (५) शरीर जलने लगना, (६) भोजन में अरुचि, (७) महामूर्छा, (८) उन्मत्त की तरह चेष्टा करना, (९) प्राणों में सन्देह, और (१०) अन्त में मरण ।
ये और इस प्रकार के अनेक रूप काम के हैं; जो काम की उत्पत्ति और वृद्धि के कारण हैं।
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