________________
होते मूढ नर कामपरायण
४३
की तरह उनका एक-एक शब्द नपा-तुला होता है। काम शब्द का प्रयोग दो अर्थों में होता है-इच्छा-काम और मदनकाम । इच्छाकाम का अर्थ शास्त्रकार इस प्रकार करते हैं
__ "मोहोदयाभिभूतैः सत्त्वैः काम्यन्ते शब्द-रस-रूप-गन्ध-स्पर्शा इति कामाः" मोह के उदय से अभिभूत प्राणियों द्वारा जिन शब्द, रस, रूप, गन्ध और स्पर्श, इन इन्द्रिय विषयों की या उनके उपभोग की कामना की जाती है, उन्हें काम कहते हैं । यों तो धन-सम्पत्ति, ऐश्वर्य, पद, प्रतिष्ठा आदि की इच्छा करना भी काम है। यह कामना जब अपनी सीमा से बाहर चली जाती है, तब तृष्णा का रूप ले लेती है। यहाँ इस प्रकार की कामना का अर्थ अभीष्ट नहीं है। यहाँ भोगों एवं इन्द्रियविषयों की प्राप्ति से आनन्द की इच्छा करना काम है । यही विषयेच्छा या वासना कहलाती है ।
दूसरा है—मदनकाम । इसकी परिभाषा इस प्रकार है
'कामः स्त्रीगतोऽभिलाषः' अर्थात् स्त्री-पुरुष के परस्पर संयोग की अभिलाषा काम है । मदनकाम वेदोदय के उपयोग से होता है। वह काम प्रवृत्ति का कारण होने से काम कहलाता है । काम के साथ भोग शब्द जुड़ा हुआ रहता है। काम और भोग में बहुत थोड़ा-सा अन्तर है। भगवती सूत्र (श० ३।उ० ७) में एक प्रश्नोत्तरी द्वारा काम और भोग के अन्तर का स्पष्टीकरण किया गया है
'कइविहाणं भंते ! कामा पन्नत्ता ?' 'गोयमा ! दुविहा कामा पन्नत्ता, तं जहा-सद्दा, रूवा इति ।' "भंते ! काम कितने प्रकार के बताए गये हैं ? "गौतम ! काम दो प्रकार के बताए गये हैं; वे इस प्रकार हैं- शब्द और
रूप।"
''कइविहाणं भंते ! भोगा पन्नत्ता ?"
"गोयमा ! तिविहा भोगा पन्नत्ता, तं जहा-गंधा, रसा, फासा ।" भंते ! भोग कितने प्रकार के कहे हैं ? "गौतम ! भोग तीन प्रकार के बताए गये हैं, जैसे कि गन्ध, रस और स्पर्श ।
"कइविहाणं भंते ! काम-भोगा पन्नत्ता ?"
"पंचविहा कामभोगा पण्णत्ता तं जहा-सदा रूवा रसा गंधा फासा।" "भगवन् ! समुच्चय रूप में काम-भोग कितने प्रकार के कहे गए हैं ?"
गौतम ! समुच्चय में काम-भोग पाँच प्रकार के बताए गए हैं, जैसे कि-शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ।
जहाँ काम, तहाँ राम नहीं इच्छाकाम हो, चाहे मदनकाम, दोनों ही प्रकार के काम जीव को धर्म से च्युत कर देते हैं। जब काम का जन्म हृदय में होता है, तब धर्म हृदय से पलायित
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org