________________
लोभी होते अर्थपरायण ३५
अर्थलोभ आधुनिक सामाजिक बुराइयों का मूल आज के युग में छल, प्रपंच, झूठ-फरेब, भ्रष्टाचार, बेईमानी, धोखाधड़ी, मिलावट, रिश्वतखोरी, तस्करी, चोरबाजारी आदि जितनी भी सामाजिक बुराइयाँ फैली हुई हैं, जिनके कारण हमारा राष्ट्र एवं समाज नैतिक दृष्टि से खोखला एवं दिवालिया हो रहा है, इसकी तह में जाएँ तो मालूम होगा कि ये सब अर्थलोभ की करामात है । अर्थलोभ ही इन सबका जन्मदाता है । प्रामाणिकता, न्याय-नीति और सत्य व्यवहार की कमी आदि सब कुछ लोभी मनुष्यों की लुब्धकवृत्ति का ही परिणाम है। अच्छी वस्तु में बुरी वस्तु की मिलावट क्यों होती है ? दूध में पानी क्यों मिलाया जाता है, तोल-नाप में न्यूनाधिकता का क्या कारण है ? रिश्वत क्यों ली जाती है ? इन सब प्रश्नों का एक ही उत्तर है, वह है अधिकाधिक धनप्राप्ति की लालसा ।
सारे खुराफातों की जड़ : धनलिप्सा ___ गहराई से देखा जाए तो संसार में कोई भी ऐसा पाप नहीं है, जो धन के लोभ के कारण न होता हो। चोरी, लूट, ठगी, व्यभिचार, छल, बेईमानी, अन्याय, हिंसा, जुआ, आदि कोई भी ऐसी बुराई नहीं है, जो अर्थ लोभ के कारण न होती हो। इसलिए एक कहावत मशहूर है
"Covetry is the cause of many disastours." -लुब्धता अनेक विपत्तियों का कारण है। श्रीमद् भागवत में इसे अनर्थों का मूल बताते हुए कहा है
"स्तेयं हिंगाऽनृत दम्भः कामः क्रोधः स्मयोमदः । भैदो वैरमविश्वासः संस्पर्धा व्यसनानि च ॥ एते पचदशानर्था ह्यर्थमूला मता नृणाम् ।
तस्मादर्थमनर्थाख्यं श्रेयोऽर्थी दूरतस्त्यजेत् ॥ चोरी, हिंसा, झूठ, दम्भ, काम, क्रोध, स्मय, मद, भेद (फूट) वैर, अविश्वास, स्पर्द्धा और व्यसन-जुआ, व्यभिचार और शराब; ये १५ अनर्थ मनुष्यों में अर्थमूलक माने गए हैं । अतः श्रेयोऽर्थी पुरुष अर्थनामवाले इस अनर्थ का दूर से ही त्याग कर दे।
धन का नशा : सबसे बड़कर अर्थपरायण लोभी मनुष्य यह नहीं देखता कि दूसरे के साथ मेरे क्या सम्बन्ध हैं ? वह अपने अर्थ के नशे में दूसरे का अपमान करते देर नहीं लगाता । वास्तव में धन का नशा बहुत ही बढ़कर है, इस बात को राजस्थान के बिहारी कवि ने भी बताया है
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । वा खाए बौरात है, या पाए बौराय ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org