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आनन्द प्रवचन : भाग ८
ही खड़े एक अतिजिज्ञासु बालक ने पूछा- 'भगवन् ! संसार में सबसे छोटा कौन है ?" बालक की प्रतिभा देख कर तथागत बुद्ध कुछ गम्भीर हुए और बोले-"सबसे छोटा वह है, जो केवल अपनी ही बात सोचता है, अपने ही स्वार्थ को सर्वोपरि मानता है ।" इन शब्दों में तथागत ने स्वार्थपरायण जीवन की क्षुद्रता का सजीव चित्रण प्रस्तुत कर दिया है। यदि मनुष्य लाभवश अपने ही स्वार्थ का ध्यान रखकर हर तरह से सम्पत्ति प्राप्त करने और अधिक से अधिक संग्रह करने में ही लगा रहे तथा अन्य मनुष्यों के सुख-दुःख से सर्वथा उदासीन बन जाए तो वह समस्त संसार का वैभव पाकर भी सुखी नहीं हो सकता। ऐसी दशा में वह अन्य सब लोगों को अपना विरोधी अथवा शत्रु ही समझेगा और उसे उनकी ओर से यह खटका रहेगा कि अवसर पाते ही वे उसे अपदस्थ करने या नीचा दिखाने की चेष्टा करेंगे। ऐसी सशंकित अवस्था में किसी को वास्तविक सुख शान्ति मिल सके, यह असम्भब बात है। ऐसे स्वार्थी और अन्य लोगों को अपना प्रतिद्वन्द्वी अथवा विरोधी समझने वाले अपने को सदैव संसार में अकेला ही अनुभव करते हैं। वे चाहे धार्मिक क्रियाकाण्ड कर लेते हों या भगवान् का नाम दिखाने के लिए या अभ्यासवश कर लेते हों पर उनका भरोसा उन पर प्रायः नहीं होता। उनकी दृष्टि अपने ही स्वार्थ पर टिकी रहती है।
___ बहुत ही दरिद्र चार ब्राह्मण थे, पर थे मूर्ख और अतिस्वार्थी । किसी ने दूध पीने के लिए उन चारों को एक गाय दे दी। गाय एक और हिस्सेदार चार थे, अतः चारों ने बारी बांध ली। चारों क्रमशः एक-एक दिन उसे दुहने लगे । वे चारों स्वार्थी अपनी-अपनी बारी के दिन दुह तो लेते पर गाय को कोई चारा नहीं डालता था । प्रत्येक यही सोचता था कि कल तो मुझे दूध दुहना ही नहीं, तब मैं क्यों अपना चारा खर्च करूँ, चारों का स्वार्थमूलक चिन्तन एक-सा ही चलता रहा। इस आपाधापी में गाय का दूध धीरे-धीरे सूख गया । बेचारी भूखी प्यासी गाय मर गई । लोगों ने गाय को जब मृतदशा में देखा तो गो-माता कहने वाले उन निपटस्वार्थी ब्राह्मणों को धिक्कारा-"अरे स्वार्थ के पुतलो, दूध तो दुह लिया, पर बेचारी गाय को चारा डालने का काम दूसरों पर डाल दिया। स्वार्थियों की अधम मनोदशा का चित्रण करते हुए कवि कहता है--
वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः शुष्कं सरः सारसाः । पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपाः दुग्धं वनान्तं मृगाः ।। निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिकाः, भ्रष्टश्रियं मंत्रिणः।
सर्वः कार्यवशाज्जनोऽभिरमते; कस्याऽपि को वल्लभः ? वृक्ष पर जब फल नहीं रहते, तब पक्षीगण उसे झटपट छोड़ देते हैं, सरोवर के सूख जाने पर सारस भी उसका त्याग कर देते हैं, फूल जब मुरझाकर बासी हो जाते
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