SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ आनन्द प्रवचन : भाग ८ 1 से दोनों बहरे हो रहे थे । आखिर दोनों आपस में लड़ते-लड़ते कट मरे । हीरा दोनों को नहीं मिला । चोरी का मूल अर्थलोभ अलोभी या धनमोही अपनी धनलिप्सा की पूर्ति के लिए चोरी को अपनाता है । वह धन पाने की धुन में उसके परिणामों की ओर नहीं झांकता । कहा भी है"लोभाविष्टो नरोवित्तं वीक्षते न स चापदम् । न तथा लगुडाहातिम् ॥” दुग्धं पश्यति मार्जारो, लोभी मनुष्य धन को देखता है, किन्तु उससे उत्पन्न होने वाली आफत को नहीं देखता । बिल्ली दूध को देखती है, किन्तु लाठी के प्रहार को नहीं देखती । भी बढ़ती गई । धन बगदाद के खलीफे के यहाँ 'हसन' नामक नौकर था । वह अतिलोभी था । नौकरी से उसने बहुत धन कमाया, परन्तु धन पाने की उसकी लालसा बढ़ती ही गई । वह धन जोड़-जोड़कर रखता जाता और मामूली खा-पीकर जिंदगी गुजारता था । उसे धन का लालच इतना बढ़ा कि एक दिन उसने अपनी स्त्री फातिमा से कहा - " फातिमा ! तुम बाजार में जाओ और लोगों से कहो कि खलीफा ने मेरे पति को कैद कर लिया है, इससे लोग तुम्हारे प्रति हमदर्दी बताकर तुम्हें रोटी कपड़े के लिए मदद कर देंगे । मैं रात को घर में आ जाया करूँगा ।" हसन अपने सगे सम्बन्धियों को भी धोखा देने लगा । धन के साथ उसकी कंजूसी लुब्धक हसन अब राजमहल में से प्रतिदिन एक रत्न चुरा लाता । उसने अपनी स्त्री से कहा- देखो ! हम रत्नों को सोने के सिक्कों के बदले में बदलवाकर बगदाद से बहुत दूर भाग जायेंगे और सुख से रहेंगे ।" एक दिन हसन चोरी करता हुआ पकड़ा गया, उसे खलीफा के सामने पेश किया गया । खलीफा ने न्यायालय का फैसला सुनाते हुए कहा- तुम्हारी बीबी राजमहल से चुराया हुआ रत्न बेच रही थी । तुम चोरी करते पकड़े गये हो। इससे साफ जाहिर है कि तुम चोर हो । तुम्हारे पास गुजारे के लायक धन की कमी नहीं, पर तुमने धन के महालोभ में आकर सबको चकमा दिया । बाजार वालों, सम्बन्धियों व मुझे धोखा देने के अपराध में तुम्हें सिर से लेकर पैर तक पीटा जाए और चोरी के जुर्म में तुम दोनों को शूली पर चढ़ाया जाय ।" यह सुनकर हसन और उसकी पत्नी बहुत गिड़गिड़ाने लगे । खलीफा को उन पर रहम आ गया । उन्होंने हुक्म दिया - बेईमानी और धोखेबाजी से कमाए हुए धन को ये अपने गले में बाँधकर घर ले जायें ।" परन्तु सारे शहर में मुनादी करवा दी गई कि कोई भी व्यक्ति हसन और उसकी स्त्री को धन के बदले खाने-पीने और पहनने का सामान न दे । जो इस आज्ञा का उल्लंघन करेगा उसे फाँसी की सजा दी जायगी । ऐसा ही किया गया । हसन और उसकी स्त्री घर आने मिला और जान भी बची। उन्होंने इस खुशी में सिक्के 1 Jain Education International पर बहुत खुश थे कि धन भी गिनने शुरू किये । मगर दो For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy