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________________ शत्रु बड़ा है, अभिमान ३६५ परन्तु याद रखिए, किसी भी बल का अभिमान और उसका दुरुपयोग उसके एवं समाज तथा राष्ट्र के लिए बहुत ही अनर्थ कर है। रूपमद के रूप में __ रूप एवं सौन्दर्य भी नाशवान हैं, क्षणिक हैं। वृद्धावस्था और व्याधि, इन दोनों के कारण किसी का रूप का अभिमान टिक नहीं सकता । संसार में एक से एक बढ़कर रूपवान हैं । कोई यह गारण्टी नहीं दे सकता कि मेरा रूप चिरस्थायी रहेगा। मथुरा नगरी की नर्तकी वासवदत्ता को अपने रूप पर बड़ा गर्व था। उसके रूप से आकर्षित होकर हजारों युवक उसके इशारे पर नाचने को तैयार रहते थे। लेकिन शीघ्र ही उसके शरीर में एक ऐसा रोग हो गया, जिससे सारा शरीर सड़ गया। राजा ने उसे नगर के बाहर फिंकवा दिया। अब उस नर्तकी के पास कोई फटकता न था। जिस रूप पर उसे गर्व था, वह गलकर चूर-चूर हो गया । सारा रूप बीमारी के कारण नष्ट हो गया । वासवदत्ता को बड़ा पश्चात्ताप हुआ। हस्तिनापुर के सनत्कुमार चक्रवर्ती को अपने सौन्दर्य का बड़ा अभिमान था। देवलोक में उसके सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर दो देवता ब्राह्मण के वेष में उसे देखने आये । चक्रवर्ती उस समय स्नानागार में सुगन्धित तैलमर्दन करा रहे थे, आभूषण रहित थे, फिर भी उनका रूप दर्शनीय था। चक्रवर्ती द्वारा विप्रों से आगमन का प्रयोजन पूछे जाने पर उन्होंने बताया-"हम आपके अलौकिक रूप का वर्णन सुनकर देखने के लिए आये थे। परन्तु हमने जैसा सुना था, उससे सवाया देखा।" यह सुनकर सनत्कुमार अपने रूप की प्रशंसा से रूप गर्वित होकर कहने लगे- "भूदेवो ! आपने अभी तक मेरा रूप देखा ही कहाँ है ? रूप देखना हो तो जब स्नान करके वस्त्राभूषण पहन कर राजसभा के सिंहासन पर बैलूं, तब देखना ।' विप्रों ने कहा-"अच्छा ऐसा ही करेंगे।" राजा भी झटपट स्नान करके वस्त्राभूषण पहन कर सिंहासन पर बैठे और उन दोनों ब्राह्मणों को बुलाया। ब्राह्मणों ने चक्रवर्ती का रूप देखकर खिन्न स्वर में कहा- “मनुष्य के रूप, यौवन, लावण्य,' क्षणभर तो बहुत अच्छे दिखाई देते हैं, पर खेद है, क्षणभर में वे एकदम तुच्छ हो जाते हैं। यह सुनकर चक्रवर्ती ने कहा-"विप्रो ! मेरा रूप देखकर आप खेद क्यों प्रकट करते हैं ?" उन्होंने कहाराजन् ! आप जानते ही हैं, देवता शय्या में पैदा होते हैं, तब से लेकर उनका आयुष्य छह महीने बाकी रहे, वहाँ तक उनका रूप और यौवन ज्यों का त्यों रहता है, परन्तु मनुष्य के तो यौवन-अवस्था तक रूप तेज और यौवन बढ़ते हैं, उसके बाद ज्यों-ज्यों उम्र ढलती जाती है, त्यों त्यों इनका ह्रास होता जाता है। मगर आपके रूप में तो हमें विशेष आश्चर्यजनक बात दिखाई दी है। आपका रूप अभी ही हमने देखा और अभी ही उसका ह्रास प्रारम्भ होने लगा है।" सनत्कुमार ने पूछा- "आपको यह कैसे पता लगा ?" इन्होंने कहा-हम देव हैं। आपके रूपगर्व करने के साथ ही आपके शरीर में ७ महारोग उत्पन्न हो गए हैं-(१) कुष्ट, (२) शोथ, (३) ज्वर, (४) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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