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________________ क्रोध से बढ़कर विष नहीं ? ३२५ - बन्धुओ ! आप भी अपना यही हाल समझिए । अगर आप क्रोधरूपी विष को आते ही रोकेंगे नहीं, उसे जहरीले फोड़े की तरह पपोलते रहेंगे तो याद रखिये एक न एक दिन क्रोध का विष भी आप के सारे जीवन में फैल जाएगा और वह आपको ले डूबेगा । आपकी आत्मा को अध्यात्मपथ पर आगे नहीं बढ़ने देगा। इसलिए क्रोधरूपी विषैले कीटाणु का पता लगते ही तुरंत उसे खदेड़ने की कोशिश कीजिए। - क्रोध को देखने और नापने की प्रक्रिया क्रोधरूपी विष जीवन में है या नहीं ? है तो कितनी डिग्री है ? उसके बाद नियंत्रण का अभ्यास कैसे करना चाहिए ? इस सम्बन्ध में कुछ विचार प्रस्तुत करता हूँ। रोग के कीटाणुओं को देखने की तरह क्रोध के विषाक्त कीटाणुओं को बारीकी से देखने के लिए सूक्ष्म अन्तनिरीक्षण-आलोचन आवश्यक है। __ इसके साथ ही क्रोध कितनी डिग्री का है ? क्रोधनियंत्रण के प्रति रुचि है या नहीं ? इसके नाप-तौल के लिए कुछ प्रश्न प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनके उत्तर अपने आप ही 'हाँ' या 'ना' में आप दे लें। (१) आपको क्रोध आता है या नहीं ? (२) तीव्र आता है या मन्द ? (३) क्रोध सकारण आता है या अकारण ? (४) यदि सकारण आता है तो कौन-सा कारण है ?- (अ) आपके मन के अनुकूल या आज्ञानुसार अमुक व्यक्ति ने कार्य नहीं किया इस कारण ? (आ) पहले किसी ने आपके प्रति कोई उपकार किया था इस कारण ? (इ) वर्तमान में आपकी कोई धन, जन या किसी पदार्थ को क्षति पहुँचाई, इस कारण ? या (ई) आपके अहं को चोट पहुँची, इस कारण ? (उ) आपका अपमान कर दिया, इस कारण ? या (ऊ) और कोई कारण बना ? अथवा (ऋ) दुर्वचन से, स्वार्थपूर्ति में बाधा से, अनुचित व्यवहार से, भ्रान्ति से या विचारभेद, अथवा रुचिभेद से क्रोध आया ? (५) जो भी कारण क्रोध का बना, उसके निवारण के लिए आपने कोई उपाय किया या नहीं ? (६) क्रोध आपको प्रतिदिन आता है या कभी-कभी पांच दस दिन में ? (७) एक दिन में एक बार आता है या अनेक बार ? (८) क्रोध आने पर तत्काल शान्त हो जाता है या गाँठ बांध कर लंबे समय तक टिकता है ? (8) बाद में आपको क्रोध के लिए कभी पश्चात्ताप होता है ? या कभी क्रोधनियन्त्रण न कर सकने के लिए कुछ प्रायश्चित लेने की इच्छा होती है ? (१०) जब क्रोध आता है तब अपने भीतर ही सीमित रहता है, या गाली, मारपीट या हाथ पैर चलाने के रूप में बाहर आ जाता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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