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क्रोध से बढ़कर विष नहीं ? ३२३ आगे अँधेरा आदि सब क्रोधविष जन्य उपद्रव हैं। क्रोधरूपी विष के कारण शरीर में अनेक व्याधियाँ लग जाती हैं और दिनानुदिन मनुष्य क्षीण होकर अल्पकाल में काल के गाल में चला जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक 'सोना' कहते हैं-क्रोधरूपी विष मनुष्य को मद्यपान की तरह विचारशून्य, दुर्बल एवं लकवे की तरह शक्तिहीन बना देता है। दुर्भाग्य की तरह यह जिसके पीछे पड़ता है, उसका सर्वनाश करके ही छोड़ता है। क्रोधजन्य महाव्याधि का शरीर और मन पर जो दूषित असर होता है, वह जीवन को पूरी तरह असफल बना देता है। अशान्ति, आशंका, आवेश आदि बिकार उसे घेरे रहते हैं । पाश्चात्य विचारक Otway (ऑटवे) कहता है
"It is in my head, it is in my heart, it is everywhere, it rages like a madness and I most wonder how my reason holds."
यह क्रोध मेरे मस्तिष्क में है, यह मेरे हृदय में है, यह सर्वत्र घुस गया है; यह पागल पन की तरह भड़क उठता है, और मैं बहुत आश्चर्य करता हूँ कि यह मेरी तर्क शक्ति को कैसे पकड़ लेता है !"
क्रोध विष को न रोकने से भयंकर हानि क्रोध-रूपी विष जब मन, वचन और काया में फैलने लगे कि तुरन्त उसे रोक देना चाहिए। जो इस विष को फैलने से रोकता नहीं है, उसे भयंकर कष्ट उठाना पड़ता है।
__ क्रोधविष को न रोकने से स्कन्दकाचार्य अग्निकुमार बन गये थे, यह मैं पहले बता चुका हूँ। द्वैपायन ऋषि ने यादवों पर भयंकर क्रोध करके निदान कर लिया था, कि मैं यादवों और द्वारिका का विनाश करने वाला बनूं ।" फलतः वे अग्निकुमार देव हुए। द्वारिकानगरी भस्म कर दी । श्रीकृष्ण आदि कुछेक यादवों को छोड़कर अन्य समस्त यादवों का सर्वनाश कर दिया । सारांश यह है कि क्रोध के वश होकर द्वैपायनऋषि ने अपनी तपस्या का फल खो दिया । त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में भगवान् महावीर ने शय्यापालक के कानों में अत्यन्त क्रोध विष से व्याप्त होकर गर्मा-गर्म शीशे का रस उंडेलवा दिया था, जिसके परिणामस्वरूप उनके कानों में भगवान् महावीर के भव में कीलें ठुकीं।
__अतुंकारी भट्टा को क्रोधविष से व्याप्त होने के कारण बर्बर वेश में अनेक संकट सहने पड़े। क्रोधवश कूरड़-उकूरड़ मुनियों ने संयम जीवन से हाथ धोए । क्रोध के कारण तपस्वी मुनि चाण्डाल कहलाए ।
दबे हुए क्रोध को पुनः जगाना तो और भी भयंकर किन्हीं दो व्यक्तियों में किसी कारणवश झगड़ा हो गया। क्रोध के कारण दोनों उत्तेजित हो गए। किन्तु शान्त एवं परोपकारी हितैषी सज्जन ने बीचबिचाव करके उस लड़ाई को शान्त करा दी। परन्तु किसी क्रोधप्रिय एवं कलहप्रिय व्यक्ति
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