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क्रोध से बढ़कर विष नहीं ? ३२१ जिसे उसने साधु जीवन जैसे पवित्र और उच्च साधनामय जीवन में अपना लिया था । उक्त साधु का क्रोध मन और वचन की भूमिका को पार करके कायिक चेष्टा तक पहुंच गया था। मन में ही क्रोध कर लेता तो स्थूल दृष्टि वाले लोगों को पता न चलता कि वह सर्प क्यों और कैसे बना है ? परन्तु वह साधु तो वचन से क्रोध न करके कायिक चेष्टा में क्रोधरूपी विष को ले आया। कहानी मैं पहले सुना चुका हूँ, इसलिए दोहराऊँगा नहीं। चण्डकौशिक का पूर्वजन्म का जीव साधु अपने शिष्य को अत्यन्त क्रुद्ध होकर मारने दौड़ा था, किन्तु स्वयं खम्भे से टकरा जाने के कारण वह वहीं धड़ाम से गिर पड़ा और वहीं उसके प्राणपखेरु उड़ गये । उस साधु की चेष्टा क्रोधरूपी विष से व्याप्त थी, इसलिए उसे तदनुरूप क्रोधरूपी विष से ओतप्रोत सर्पयोनि मिली। वह चण्डकौशिक विषधर बना । वह भी सामान्य सर्प नहीं, दृष्टि विष सर्प !
क्रोध का विष कितना भयंकर होता है ? उसकी मार कितनी दूर तक होती है ? बल्कि यह कहा जा सकता है, कि सर्प के विष से भी मनुष्य के क्रोध का विष भयंकर मारक होता है। परन्तु आज का स्थूलदृष्टि वाला मानव सांप को अधिक विषैला मानता है, क्रोध विष से व्याप्त मनुष्य की अपेक्षा । मैं आपसे ही पूछता हूँ कि आपको पता चल जाए कि इधर सामने से एक जहरीला सांप आ रहा है, तो क्या आप इस रास्ते से जाएंगे ? नहीं जाएंगे। आप किसी और रास्ते से जाने का प्रयत्न करेंगे, या फिर ठहर कर जाएँगे? परन्तु क्रोध के जहर से जहरीला मानव आ रहा हो तो आप उस रास्ते से बेधड़क होकर जाएँगे। परन्तु आप यह निश्चित समझिए कि सर्प के विष की अपेक्षा मनुष्य का क्रोध विष अधिक खतरनाक है । एक दृष्टान्त से इसे समझिए
__ एक बार सांप से सिंह आदि जानवरों ने कहा- "भाई, हम तो काटते हैं, तो कुछ रक्त या मांस खाने को मिलता है, परन्तु तुम को क्या मिलता है ? फिर तुम क्यों किसी को काटते हो ?" सांप ने कहा-"भाई ! मेरा काटा हुआ तो फिर भी कुछ दिनों में ठीक हो जाता है, पर मनुष्य को देखो, उसके क्रोध-रूपी विष का काटा हुआ मनुष्य एक जन्म में क्या, कई जन्मों तक प्रायः ठीक नहीं होता।" पागल कुत्ते का काटा हुआ मनुष्य प्रायः तीन दिन में ठीक हो जाता है, सर्प का काटा हुआ भी प्रायः तीन चार दिन में ठीक हो जाता है, बिच्छ का काटा हआ भी प्रायः २४ घन्टे के अन्दर-अन्दर ठीक हो जाता है, परन्तु मनुष्य के क्रोधरूपी विष द्वारा काटा हुआ -प्राणी चिरकाल में, कई दफा तो कई जन्मों में जा कर ठीक होता है । - वस्तुतः क्रोध का विष सांप के विष से भी भयंकर होता है। क्रोध स्वयं एक भयंकर विषधर है। बाइबिल का कहना है-'क्रोध को लेकर सोना अपनी बगल में जहरीले सांप को लेकर सोना है।" जिसने अपनी आस्तीन में इस सांप को पाल रखा है, भगवान् ही उसका रक्षक है।
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