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________________ लोभी होते अर्थपरायण धर्मप्रेमी बन्धुओ ! कल मैं आपके सामने गौतमकुलक की पृष्ठभूमि और उस ग्रन्थ से जीवन की परख के बारे में कह गया था। गौतमकुलक में जीवन की परख के लिए पहला सूत्र दिया है 'लुद्धा नरा अत्थपरा हवन्ति' लोभी नर अर्थपरायण होते हैं। इसका आशय यह है कि लोभी व्यक्तियों का जीवन सदा अर्थ के पीछे लगा रहता है । ___ इस संसार में अनेक प्रकृति के मानव होते हैं। कोई लोभी होता है तो कोई सन्तोषी, कोई कृपण होता है तो कोई उदार, और कोई ,निपट स्वार्थी होता है तो कोई परमार्थी । इन विभिन्न जीवनों में से आपको अपने लिए चुनाव करना है कि आपके लिए कौन-सा जीवन उपादेय है ? तथा इनमें से कौन-सा जीवन त्याज्य और कौन-सा ज्ञेय है ? इसे भी परखना है। यह भली-भाँति समझना है कि लोभी जीवन हेय क्यों है और लोभी प्रकृति के लोग इसे उपादेय समझकर क्यों अपनाए हुए हैं ? लोभी मानव की तीन मनोवृत्तियाँ लोभी जीवन संसार में सबसे निकृष्ट जीवन होता है। लोभग्रस्त मानव की सदा तीन परिणाम धाराएँ होती हैं, जो इस प्रथम सूत्र में 'अत्थपरा हवन्ति' से स्पष्ट सूचित कर दी हैं। सर्वप्रथम उसकी परिणामधारा होती है-धन की रट, दूसरी होती है -संसार के पदार्थों के संग्रह करने की रट, और तीसरी होती हैस्वार्थ-परायणता । आपने देखा होगा कि लोभी व्यक्ति में प्रायः ये तीनों कुमनोवृत्तियाँ पायी जाती हैं-वह धन के पीछे दीवाना बना रहता है, संसार के मनोज्ञ पदार्थों को जुटाने में तत्पर रहता है और सदा अपने स्वार्थ को साधने की ताक में रहता है। इसीलिए लोभी मनुष्यों को अर्थपर कहा है। अर्थ शब्द में ये तीनों ही अर्थ निहित हैं। लोभी जीवन : धन की रटन - लोभी मनुष्य में धन की अत्यधिक भूख होती है। धन की चकाचौंध में उसकी आँखें इतनी चुंधिया जाती हैं कि वह परिवार, समाज या राष्ट्र में जो निर्धन होंगे, उनकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखता, चाहे उनमें अन्य गुण हों । उसके For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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