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कपटी होते पर के दास
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था कि इस (दण्डनायक) का अपने पुत्र से झगड़ा हो गया था, लड़का अपने पिता के क्रोध से बचने के लिए यहाँ आ गया था, मैंने उसको पिछले कमरे में छिपा दिया था। दण्डनायक ने आते ही मकान का दरवाजा बन्द कर दिया ताकि लड़का कहीं भाग न जाए और वह उसे तलाश करने लगा। लेकिन जब लड़का उसे न मिला तो क्रोध में भन्नाता हुआ वह निकल गया।"
___इस सूझ-बूझ और माया से भरे अनूठे उत्तर से पति अपनी पत्नी के व्यभिचारिपन को तो समझ ही न सका, उलटे वह उसकी दयालुता और सहृदयता पर प्रसन्न हो कर धन्यवाद देने लगा। पत्नी ने अपने पाप पर पर्दा डाल दिया।
कुटिल प्रकृति का व्यक्ति चाहता रहता है कि कहीं मेरा असली रूप या व्यक्तित्व प्रगट न हो जाए। जिससे मुझे सबके सामने दोषी और लज्जित होना पड़े। उसकी अन्तरात्मा में एक गुप्त भय, छिपी हुई शंका, दुरूहता, अस्पष्टता, और छिपाने की प्रवृत्ति सदा बनी रहती है। वह सोते-जागते, बैठते-उठते, बातचीत या व्यवहार करते, चलते-फिरते अपने व्यवहार में सदैव सतर्क रहता है।
___जटिलता ऐसा मनोविकार है, जो मनुष्य को गढ़ बना देता है । जटिल व्यक्ति सदा एक जगह स्थिर होकर नहीं रहता। वह प्रायः रूप बदलता रहता है । वह अपने अपराधों को छिपाने के लिए अथवा दण्ड से बचने के लिए अपना वेश, व्यवसाय, स्थान और रूप आदि बदलता रहता है, ताकि किसी की गिरफ्त में न आए। तस्करी (स्मगलिंग) या चोरबाजारी करनेवाले व्यक्ति प्रायः इस प्रकार की माया का सहारा लेते हैं । यह जीवन की सुख-शान्ति और प्रतिष्ठा को बर्बाद कर देती है ।
__ आज मनुष्य ने अपना जीवन जटिल, दुरूह और आडम्बर पूर्ण बना लिया है । उसका अन्दर का भाव कुछ और तथा बाहर का आचरण बिलकुल दूसरा है । वह सोचता कुछ है और करता या दिखाता कुछ है। ऐसी जिंदगी में अनेक समस्याएँ, जटिलताएँ एवं परेशानियाँ आए-दिन मुंहबाए खड़ी रहती हैं। मनुष्य का जीवन भारभूत हो जाता है। जटिलता के कारण मनुष्य के व्यक्तित्व के दो हिस्से हो जाते हैं-(१) असली व्यक्तित्व, जो छिपा रहता है, वह दोष युक्त, पापी और अपराधी होता है । (२) सात्त्विक, सरल, निर्दोष और भय से युक्त व्यक्तित्व । इस प्रतिकूलता के कारण गुप्त मन में सदा महाभारत मचा रहता है। दूसरों को धोखा देने, ठगने नीचा दिखाने आदि की इच्छाएँ और जटिलताएँ मायी व्यक्ति के मन में छिपी रहती हैं।
माया : दुराव और छिपाव के रूप में दुराव और छिपाव भी माया के सहचर हैं, जो स्थायी रूप से मन के कोनों में छिप जाते हैं, जैसे छेद में कील या बिलों में चूहे । ये अज्ञात मन में जटिल भावनाग्रन्थियों के रूप में छिप कर अपना कार्य किया करते हैं। मनोविज्ञान शास्त्र के
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