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२७६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ कोई न कोई स्वार्थ, वक्रता या कौटिल्य रहता है। जिसे आज की भाषा में पॉलिसी कहते हैं, वही मायावान के मन, वचन, चेष्टा, व्यवहार आदि में आ जाती है। अप्पय्य दीक्षित ने ठीक ही कहा है
"कुटिलगतिः कुटिलमतिः कुटिलाशयः कुटिलशीलसम्पन्नः ।
सर्वं पश्यति कुटिलं कुटिलः कुटिलेन भावेन ॥"
-कुटिल व्यक्ति सभी चीजें कुटिलभाव से कुटिलरूप में देखता है, उसकी गति भी कुटिल होती है, मति भी कुटिल उसका मनोभाव भी कुटिल और उसका आचरण भी कुटिलता से युक्त होता है।
एक मायी पण्डित का उदाहरण लीजिए
एक ज्योतिषी था । वह था तो अधूरा ही ज्योतिषी, किन्तु उसने लेबल बहुत बड़ा लगा रखा था। दो चार ऐसी घटनाएं हो गईं, जिनसे वह नगर के प्रमुख ज्योतिषियों की पंक्ति में माना जाने लगा।
एक दिन राजा ने अपने प्रमुख ज्योतिषियों को आमंत्रित किया। उनके पहुँचने पर राजा ने सभी का यथोचित सम्मान किया और आगन्तुक ज्योतिषी के समक्ष एक प्रश्न रखा-"महारानी जी गर्भवती हैं। बताइए, उनके होने वाली सन्तान पुत्र होगी या पुत्री ?" सभी यह प्रश्न सुनकर मंथन में पड़ गये। परन्तु उसी क्षण राजा ने एक विशेष संकेत दिया-आज के प्रश्न का उत्तर जो नये ज्योतिषी आए हैं, वे देंगे।"
यह सुनते ही अधूरे ज्योतिषीजी बहुत सकपकाए ! उन्हें यह कल्पना ही नहीं थी कि जवाब देने के लिए उन्हीं से कहा जाएगा। परन्तु वे अपनी माया में निपुण थे। इसलिए उन्होंने अपनी बुद्धि-कुटिलता की शान पर चढ़ाई और एक उत्तर स्फुरित हो गया। राजा द्वारा प्रस्तुत प्रश्न के उत्तर के विषय में उन्होंने कहा-"राजन् ! अभी मैं इस विषय में कुछ भी नहीं कहूँगा। सिर्फ एक पन्ने पर इसका उत्तर लिख देता हूँ। आप उसे तभी खोलकर देखें, जब महारानीजी प्रसव से निवृत्त हो जाएँ।" पण्डितजी ने एक कागज लेकर उस पर लिख दिया
_ 'पुत्रो न पुत्री' अपनी माया से 'न' शब्द पुत्र और पुत्री के बीच में रखकर उन्होंने अपना छल प्रयोग सफल किया। उनका इरादा था कि "पुत्र होगा.तो 'न पुत्री' और पुत्री होगी तो 'पुत्रो न' कहकर अपनी बात सिद्ध कर दूंगा।" परन्तु ऐसे अर्धविदग्ध ज्योतिषी केवल माया के सहारे ही अपनी जीवन नैया खेते थे, परन्तु उनका मन प्रतिक्षण आशंकित एवं भयभीत रहता था कि पता नहीं कब अविश्वास के भंवर जाल में मेरी नैया डूब जाए।
इस प्रकार माया का जाल बुनते रहने वाले अपनी आत्म-शुद्धि की साधना नहीं कर पाते, जिंदगी यों ही पूरी हो जाती है।
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